आपने ये बहुत बार सुना होगा कि अगर महात्मा गांधी चाहते तो भगत सिंह को फांसी से बचा सकते थे लेकिन उन्होंने जानबुज कर ऐसा नहीं किया। क्या वाकई में इसमें कुछ सच्चाई है या बात कुछ और ही है? आइए इस बारे में जानते हैं।

गांधी के आलोचक भगत सिंह, राजगुरु और सुखदेव की फांसी का दोषी महात्मा गांधी को ठहराते हैं और आज भी उनकी आलोचना करते हैं। तो क्या सच में ये गांधी की नाकामी थी?

लोगों को गांधी से थी बहुत उम्मीदें

जब भगत सिंह, राजगुरु और सुखदेव को फांसी दी जानी थी तो पूरे देश को गांधी से उम्मीदें थी और उन्हें लग रहा था कि गांधी ऐसा नहीं होने देंगे। वे पहले भी कई कैदियों के लिए भूख हड़ताल कर चुके थे।

इरविन वायसराय से लगातार बातचीत कर रहे थे गांधी
17 फरवरी, 1931. गांधी और वायसराय इरविन के बीच बातचीत शुरू हुई। लोग चाहते थे कि वे वायसराय को किसी भी तरह समझा लें और ये फांसी होने से रोक दें।

यंग इंडिया’ में उन्होंने लिखा भी था कि हम समझौते के लिए इस बात की शर्त नहीं रख सकते थे कि लेकिन वायसराय से इस मुद्दे पर अलग से बातचीत की जा सकती थी।

गांधी ने वायसराय से क्या कहा?
गांधी का मानना था कि वायसराय के साथ बातचीत हिंदुस्तानियों के अधिकारों के लिए है लेकिन गांधी ने वायसराय के सामने फांसी रोकने/टालने का मुद्दा कई बार उठाया।

गांधी ने वायसराय को चिट्टी लिख कर कहा था कि इस मुद्दे का हमारी बातचीत से संबंध नहीं है। इस समय ये बातचीत अनुचित भी लगे लेकिन आप हालात को बेहतर बनाना चाहते हैं तो भगत सिंह और उनके साथियों की फांसी को अभी रोक देना चाहिए या टाल देना चाहिए। वायसराय ने कहा कि सजा कम करना मुश्किल होगा, लेकिन उसे फिलहाल रोकने पर विचार किया जा सकता है।

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लोग क्या सोचते हैं?
बहुत से लोग कहते हैं कि गांधी ऐसा आसानी से करवा सकते थे लेकिन आप खुद सोचिए कि क्या ऐसा वाकई में मुमकिन था। भगत पर सैंडर्स की हत्या का इल्जाम था, तो क्या अंग्रेजी सरकार उन्हें कभी इसके लिए माफ़ करती? अंग्रेज चाहते थे कि इन तीनों को मिली सजा बाकी युवाओं को डराए इसलिए वे उनकी सजा माफ नहीं करना चाहते थे।

गांधी सजा माफ़ करने की बजाय टलवाने की बात क्यों कह रहे थे

गांधी ने इनकी सजा माफ़ करवाने के लिए कई क़ानूनी रास्ते भी तलाशे थे लेकिन कोई फायदा नहीं निकला। लेकिन गांधी इस पूरे सिनेरियो में सजा को टालने की बात कह रहे थे रोकने की नहीं। शायद वो बाद में सही मौका आने पर उनकी सजा को माफ़ करवाने का काम भी करते।

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आखिरी समय तक कोशिश कर रहे थे गांधी
गांधी अपनी कोशिशों में जुटे थे। उन्हें लगा था कि वायसराय मान जाएंगे। 21 मार्च 1931 को गांधी ने इरविन से मुलाकात भी की। 22 मार्च को भी गांधी उनसे मिले और इस बारे में बातचीत की। वायसराय ने कहा कि वे इस पर विचार करेंगे। 23 मार्च को उन्होंने वायसराय को एक चिट्ठी भेजी क्योकिं 24 मार्च को उन्हें फांसी दिया जाना तय था। गांधी की कोशिशों के बावजूद उन तीनों को 24 मार्च की शाम फांसी हो गई।

हुआ गांधी का विरोध
24 मार्च, 1931 को कांग्रेस के सालाना अधिवेशन में शामिल होने के लिए गांधी कराची पहुंचे। युवा गांधी जी की जमकर आलोचना कर रहे थे और भगतसिंह जिंदाबाद के नारे वहां लगा रहे थे।



गांधी ने अपनी कोशिशों में कोई कमी नहीं छोड़ी

गांधी सत्य और अहिंसा के पुजारी थे और वो हर काम को अहिंसा से ही करवाना चाहते थे। उनके अनुसार जो लोग चाक़ू छुरी का इस्तेमाल करते हैं वो गलत है। वे भगत सिंह और उसके साथियों को गलत नहीं कह रहे थे लेकिन उनका तरीका गलत बता रहे थे और उन्हें सजा मिलनी चाहिए थी लेकिन फांसी नहीं।

गांधी जी ने एक चिट्टी में कहा था कि मैं वायसराय को जितनी तरह से समझा सकता था, मैंने समझाया। 23 मार्च को मैंने जो उन्हें पात्र लिखा उसमे भी मैंने हर संभव प्रयत्न किया लेकिन कुछ नहीं हो सका।

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