आखिर नसबंदी अभियान संजय गांधी के लिए इतना जरूरी क्यों हो गया था, पढ़ें यहाँ
जब संजय गांधी की बात होगी तो नसबंदी अभियान की बात तो जरूर ही होगी। क्योंकि यह एक ऐसा अभियान था जिसके कारण सारे देश में त्राहिमाम मच गई थी। लोग कहीं बाहर आने-जाने में भी डरने लगे थे और इस अभियान का कहर हर एक धर्म पर टूटा था। इस अभियान और उनको याद करने के दौरान यह लाइनें जरूर बोली जाती हैं,
‘सबको सूचना जारी कर दीजिए कि अगर महीने के लक्ष्य पूरे नहीं हुए तो न सिर्फ वेतन रुक जाएगा बल्कि निलंबन और कड़ा जुर्माना भी होगा। सारी प्रशासनिक मशीनरी को इस काम में लगा दें और प्रगति की रिपोर्ट रोज वायरलैस से मुझे और मुख्यमंत्री के सचिव को भेजें।’
आप इन लाइनों से संभावना जता सकते हैं कि संजय गांधी के लिए नसबंदी अभियान कितना जरूरी रहा होगा। लेकिन सवाल यह है कि आखिर में क्यों संजय गांधी के लिए यह अभियान इतना जरूरी हो गया था जिसके कारण कॉलेज स्टूडेंट्स को भी नहीं बख्शा गया था।
62 लाख लोगों की हुई थी नसबंदी
नसबंदी अभियान इमरजेंसी के दौरान चलाया गया था। संजय गांधी इस अभियान को पूरा करने के लिए प्रतिबद्ध थे जिसकं कारण उनके उपरोक्त संदेशों को उतर प्रद्स के मुख्यमंत्री ने हाथों-हाथ लेते हुए गांव-गांव में अभियान चलाने का आदेश जारी कर दिया गया था। इस अभियान के दौरान पुलिस ने गांवों को घेरकर पुरुषों की जबरदस्ती नसबंदी करवाई थी। इसके लिए भागते पुरुषों को जबरदस्ती खदेड़ा भी गया था। जानकारी के अनुसार इस अभियान के तहत 62 लाख लोगों की नसबंदी हुई थी।
कई खबरें ऐसी भी आई थीं कि गलत ऑपरेशन के जरिये इस अभियान में लगभग दो हजार लोगों की मौत भी हो गई थी।
बनाना चाहते थे अपने आपको प्रभावी नेता
आज भी इस बात पर काफी चर्चा होती है कि ऐसा क्या था जिसने इस अभियान को संजय गांधी के लिए इतना अहम बना दिया था। दरअसल संजय गांधी के पूरे राजनीतिक जीवन पर ध्यान दें तो यह उनको प्रभावी नेता बनाने की महत्वाकांक्षा थी जिसके कारण उनके लिए नसबंदी अभियान इतना जरूरी बन गया था।
इंटरनेशनल प्रेशर
दूसरी और उस समय भारत में जनसंख्या विस्फोट हो रहा था जिसके कारण भारत पर बढ़ती जनसंख्या को रोकने का अंतर्राष्ट्रीय दबाव था। ऐसे में परिवार नियोजन मुद्दा, राजनीति में नए आए नेता संजय गांधी को एक महत्वाकांक्षी प्रोजेक्ट के तौर पर नजर आया और उन्होंने इसे जोरों-शोरों से शुरू किया।
नसबंदी अभियान
इसका एक कारण यह भी है कि उस समय के परिवार नियोजन के सारे तरीके फेल हो रहे थे। ऐसे में संजय गांधी को जबरदस्ती ही ये सब ठीक करना सही लगा।
जब 25 जून 1975 को आपातकाल लगा था तो हर कोई यह कह रहा था कि आगे गांधी-नेहरू परिवार की विरासत वही संभालेंगे। ऐसे में खुद को प्रभावशाली नेता दिखना के लिए उन्हें एक प्रोजेक्ट की जरूर थी जो उन्हें तुंरत अंतर्राष्ट्रीय राजनीति में भी नाम दिला सकता था। वैसे भी आपातकाल में उनके हाथ में निरंकुश शक्ति थी जिसका वो इस्तेमाल करना चाहते थे और उन्होंने किया भी।
हो सकता था ये अच्छा अभियान
यह एक अभियान देश का सबसे अच्छा अभियान साबित हो सकता था अगर संजय गांधी लोगों की सलाह ले लेते। अगर लोगों को जागरुक किया जाता और लोग राजी-खुशी इस अभियान में हिस्सा लेते तो आज ये हमारे देश का सबसे सफल अभियान हो सकता था। लेकिन किसी एक शख्स की जिद के कारण यह जरूरी मुद्दा आज भी लोगों को डरा जाता है।