इस पूरे विश्व में महात्मा गांधी से बड़ा अहिंसा का पुजारी शायद दूसरा कोई नहीं रहा। यह बात जानकर आपको हैरानी होगी कि अहिंसा के बल पर भारत को आजादी दिलाने वाले महात्मा गांधी को 5 बार शांति के नोबेल पुरस्कार के लिए नामित किया गया। लेकिन एक बार भी बापू को शांति को नोबेल पुरस्कार नहीं दिया गया। आइए जानें, कब-कब बापू को शांति के नोबेल पुरस्कार के लिए नामित किया गया था।

साल 1937 में
सबसे पहले साल 1937 में नॉर्वे की संसद स्टॉर्टिंग के लेबर पार्टी सदस्य ओले कोल्बजोर्नसन ने शांति के नोबेल पुरस्कार के लिए महात्मा गांधी का नाम सुझाया था। बता दें कि कोल्बजोर्नसन उन दिनों नोबेल कमेटी के 13 सदस्यों में से एक थे। विस्मय की बात यह है कि कोल्बजोर्नसन ने खुद से गांधी जी को नामित नहीं किया था। बल्कि मशहूर गांधीवादी संस्था फ्रेंड्स ऑफ़ इंडिया की नार्वे शाखा की एक महिला सदस्य से महात्मा गांधी का नाम नामांकित करवाया था।

साल 1938 और 1939 में
महात्मा गांधी को 1938 और 1939 में नामांकित किया गया, बावजूद इसके उन्हें शांति का नोबेल पुरस्कार नहीं दिया गया। हांलाकि उन दिनों अंतरराष्ट्रीय शांति आंदोलन में गांधीजी के आलोचकों की कमी नहीं थी।

साल 1947 में
1947 में शांति के नोबेल पुरस्कार के लिए मह​ज छह लोगों को नामांकित किया गया था, उनमें महात्मा गांधी का नाम भी शामिल था। तब यह पुरस्कार मानवाधिकार आंदोलन क्वेकर को दे दिया गया था। कहा जाता है कि पाकिस्तान के साथ हालात बिगड़ने के बाद गांधीजी ने कहा, मैं हर तरह के युद्ध का विरोधी हूं, लेकिन पाकिस्तान चूंकि कोई बात नहीं मान रहा है, इसलिए पाकिस्तान को अन्याय करने से रोकने के लिए भारत को उसके ख़िलाफ़ युद्ध के लिए जाना चाहिए।

उस समय नोबेल कमेटी ने गांधीजी के युद्ध वाले बयान को शांति-विरोधी माना और शांति का नोबेल पुरस्कार बापू को नहीं बल्कि क्वेकर को दे दिया गया। नोबेल कमेटी के अध्यक्ष ने लिखा कि नामांकित लोगों में महात्मा गांधी सबसे बड़ी शख्सियत थे। वह सबसे बड़े देशभक्त थे, लेकिन शांति दूत नहीं। नोबेल कमेटी अध्यक्ष ने कमेटी के निर्णय का समर्थन करते हुए लिखा कि यह बात हमें भी दिमाग में रखनी चाहिए कि गांधीजी भोले-भाले नहीं हैं।

साल 1948 में
साल 1948 में भी बापू को शांति पुरस्कार के ​नामित किया गया। लेकिन नामांकन की आखिरी तारीख से ठीक 2 दिन पहले उनकी हत्या कर दी गई। महात्मा गांधी को शांति पुरस्कार इसलिए नहीं मिल सका क्योंकि उन दिनों मरणोपरांत किसी को नोबेल पुरस्कार नहीं दिया जाता था।

गौरतलब है कि नोबेल समिति यह बात पूरी तरह से स्वीकार कर चुकी है कि महात्मा गांधी को शांति पुरस्कार नहीं देना एक बड़ी चूक थी। बता दें कि महात्मा गांधी के अहिंसावादी सिद्धांतों पर चलने वाले मार्टिन लूथर किंग और नेल्सन मंडेला जैसे लोगों को शांति पुरस्कार दिया जा चुका है। 1989 में बौद्ध धर्मगुरु दलाई लामा को शांति पुरस्कार से सम्मानित किया गया।

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