जिस प्रकार से भारत में आपराधिक कानून सभी लोगों पर समान रूप से लागू होते हैं। परंतु देश में विभिन्न धर्मों और संप्रदायों के लोगों के लिए शादी, बच्चों को गोद लेना, संपत्ति या उत्तराधिकार आदि मामलों को लेकर पृथक पृथक नियम है। कई नागरिक मामलों के लिए एक ही प्रकार की संहिता अथवा अधिनियम लागू हैं, जैसे भारतीय संविधान अधिनियम, वस्तु विक्रय अधिनियम, संपत्ति हस्तांतरण अधिनियम, भागीदारी अधिनियम और साक्ष्य अधिनियम आदि। जिस तरह भारतीय दंड संहिता (आइपीसी) और दंड प्रक्रिया संहिता सब पर लागू हैं, उसी तरह समान नागरिक संहिता (यूसीसी) भी होनी चाहिए, जो सभी वर्गों और समुदायों के लिए समान रूप से लागू हो।


दंड प्रक्रिया संहिता सब पर लागू
यूसीसी लागू करने के बाद विवाह, तलाक, गोद लेना और संपत्ति के बंटवारे में सबके लिए एक जैसा कानून होगा, चाहे वह किसी भी धर्म का क्यों न हो। वर्तमान में हर धर्म के लोग इन मामलों का निपटारा अपने पर्सनल ला यानी निजी कानूनों के तहत करते हैं। पर्सनल ला के अधिकांश प्रविधान महिलाओं की स्वतंत्रता तथा उनके मौलिक अधिकारों का हनन करते हैं।

यहां स्पष्ट करना जरूरी है कि यूसीसी के लागू होने से नागरिकों के खान-पान, पूजा-इबादत, वेश-भूषा आदि धार्मिक परंपराओं पर कोई फर्क नहीं पड़ने वाला है। कानून में समय के साथ बदलाव होते हैं, परंतु पर्सनल कानूनों का क्रियान्वयन उस धर्म के ही अधिकांश रूढ़िवादी तत्वों के हाथों में होने के कारण वे समय पर बदल नहीं पा रहे हैं जिससे उन समाजों के पिछड़ने का खतरा उत्पन्न हो जाता है। विभिन्न संप्रदायों के अपने अलग-अलग सिविल कानून होने के कारण न्यायपालिका में भ्रम की स्थिति विद्यमान रहती है तथा निर्णय देने में कठिनाई के साथ-साथ समय भी अधिक लगता है।


कानूनी मामलों के विशेषज्ञों का मानना है कि जब बहुसंख्यक वर्ग को शादी, गोद लेने, संपत्ति और उत्तराधिकार संबंधी कानून का पालन करना पड़ा तो इससे अन्य धर्मों के लोगों को क्यों बचाकर रखा गया है। एक पंथनिरपेक्ष और लोकतांत्रिक गणराज्य का उत्तरदायित्व है कि वह विभिन्न जाति, धर्म, वर्ग और लिंग से संबंध रखने वाले अपने सभी नागरिकों के लिए एक समान नागरिक और व्यक्तिगत कानून का निर्माण करे। अधिकांश विचारकों का यह मानना है कि एक देश में कानून भी एक ही होना चाहिए, चाहे वह दंड विधान हो या नागरिक विधान, अंग्रेजों ने इसके लिए कोशिश की थी, पर उन्होंने मात्र एक दंड विधान को लागू किया और नागरिक विधानों के पचड़े में नहीं पड़े। सच्चाई यह है कि ऐसा मुस्लिमों के विरोध के चलते हुआ, जबकि अन्य धर्मावलंबी उसके लिए तैयार थे।

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