इंदिरा गांधी जो की भारत ही नहीँ, एशिया की प्रमुख नेताओं में से एक थी। उनकी हत्या भी देश के लिए एक बलिदान थी। 31 अक्टूबर 1984 को इंदिरा गांधी को उन्हीं के सुरक्षा कर्मियों ने गोलियों से छलनी कर दिया गया था।

ये एक सामान्य दिन था और इंदिरा गांधी को एक मैगजीन के लिए इंटरव्यू देने जाना था लेकिन वे जैसे ही घर से बाहर निकली तो वहां तैनात सुरक्षाकर्मी बेअंत सिंह ने अपनी रिवॉल्वर निकालकर इंदिरा गांधी पर फायर किया। गोली उनके पेट में लगी।

इंदिरा ने चेहरा बचाने के लिए अपना दायां हाथ ऊपर उठाया था। लेकिन बेअंत ने उनपर बिल्कुल सटीक दो और फायर किए। ये गोलियाँ उनके सीने और कमर में लगी। बेअंत सिंह के साथ पाँच फुट की दूरी पर सतवंत सिंह अपनी टॉमसन ऑटोमैटिक कारबाइन गन के साथ मौजूद था।

इंदिरा गांधी को गिरते हुए देख इतना डर गया कि उसे कुछ समझ नहीं आया और वो अपनी जगह से हिला तक नहीं। तभी बेअंत सिंह ने उसे तेज आवाज में कहा कि गोली चलाओ सतवंत ने तुरंत अपनी ऑटोमैटिक कारबाइन की सभी 25 गोलियां उन पर दाग दी।

उनके गार्ड्स उन्हें इतनी गोलियां मार चुके थे लेकिन किसी ने कोई प्रतिक्रिया नहीं दी क्योकिं ये सब बहुत जल्दी हुआ था कि कोई कुछ समझ ही नहीं पाया। फिर सबसे पीछे चल रहे रामेश्वर दयाल ने आगे दौड़ना शुरू किया। लेकिन वो इंदिरा गांधी तक पहुंच पाते उस से पहले सतवंत सिंह की गोलियां उनके पैरों और जांघ पर आकर लगी और वे वहीं गिर गए।

अकबर रोड से एक पुलिस अफसर दिनेश कुमार भट्ट वहां पहुचें कि भला ये कैसा शोर है। इंदिरा को गोलियों से मारने के बाद सतवंत सिंह और बेअंत सिंह ने हथियार डाल दिए और कहा कि जो हमें करना था हम कर चुके हैं अब जो तुम्हे करना है तुम करो।

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नारायण सिंह ने आगे कूदकर बेअंत सिंह को जमीन पर पटक दिया। इंदिरा गांधी के निवास पर एम्बुलेंस हमेशा मौजूद रहती थी लेकिन उसका ड्राइवर गायब था तो उन्हें कार में डाल कर अस्पताल ले जाय गया और एम्स अस्पताल जाने में उन्हें 30 मिन्ट्स का समय लगा।

इंदिरा गांधी खून से लथपथ थी और सोनिया का रो रो कर बुला हाल था जो इंदिरा के साथ मौजूद थी। सोनिया का गाउन इंदिरा के खून से भीग चुका था।

गाडी से उतार कर उन्हें आईसीयू में ले जाने में 30 मिनट्स लग गए क्योकिं कोई स्ट्रेचर वहां नहीं था। मिनटों में वहां डॉक्टर गुलेरिया, डॉक्टर एमएम कपूर और डॉक्टर एस बालाराम पहुंच गए। अस्पताल के बाहर लोगों की भारी भीड़ जमा हो गई जो बेहद आक्रोश में थी।

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एलेक्ट्रोकार्डियाग्राम में इंदिरा के दिल की धड़कने काफी धीमी सुनाई दे रही थी और उनकी आँख की पुतलियाँ बाहर निकल आई थी जिस से समझ आ रहा था कि उनके दिमाग को भी श्रति पहुंची है।

एक डॉक्टर ने उनके मुँह से ट्यूब घुसाई ताकि फेफड़ों तक ऑक्सीजन पहुंच सके और दिमाग को जिंदा रखा जा सके। इंदिरा को 80 बोतल खून चढ़ा जो शरीर में खून की सामान्य मात्रा से 5 गुणा ज्यादा था।

डॉक्टर उन्हें मृत घोषित करना चाहते थे लेकिन एक आखिरी कोशिश करने के लिए उन्हें ऑपरेशन थियेटर में ले जाया गया और उनके शरीर को हार्ट एंड लंग मशीन से जोड़ दिया गया जिस से कि उनका ब्लड साफ़ हो सके लेकिन ऐसा करने से उनके रक्त का तापमान सामान्य 37 डिग्री से घटकर 31 डिग्री हो गया।

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