इंदिरा गांधी जो की भारत ही नहीँ, एशिया की प्रमुख नेताओं में से एक थी। उनकी हत्या भी देश के लिए एक बलिदान थी। वे देश की पहली महिला प्रधानमंत्री थी। लेकिन उन्ही के अंगरक्षकों ने उनकी गोली मार कर हत्या कर दी थी और आखिर इंदिरा गांधी को गोली क्यों मारी गई? इसके पीछे एक खास कारण है। आइए जानते हैं इस बारे में।

31 अक्टूबर 1984 को इंदिरा गांधी को उन्हीं के सुरक्षा कर्मियों ने गोलियों से छलनी कर दिया गया था। ये दोनों ही सुरक्षाकर्मी सिख समुदाय से थे। रोजाना की तरह ही इंदिरा सुबह उठ कर योग करने के बाद टाइम मैगजीन के पत्रकार को इंटरव्‍यू देने के लिए उनका इंतज़ार कर रहीं थीं। पत्रकार 9 बजे आने वाले थे।

लेकिन जैसे ही वे अपने घर से बाहर निकली तो उनके ही दो सिख पहरेदारों बेअंत सिंह और सतवंत सिंह ने उनका गोली मार दी। उन दोनों ने एक या दो नहीं बल्कि 25 गोलियां इंदिरा गांधी को मारी।

इसके बाद दोनों को दबोच लिया गया और इंदिरा गांधी को अस्पताल ले जाया गया। कुछ घंटों बाद इंदिरा गांधी की मौत हो गई।

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इस कारण की गोलियों की बौछार

70 के दशक के मध्य से ही कुछ सिख समुदाय के लोगो ने अपने अलग देश खालिस्तान की मांग करने शुरू कर दिया।शुरू में किसी ने इस बात और ज्यादा ध्यान नही दिया परन्तु आगे चलकर ये समस्या जटिल हो गयी। 1982–83 के समय सिख समाज द्वारा खालिस्तान की मांग जोर पकड़ने लगी और 1984में तो ये अपने चरम पर पहुंच गई।

भिंडरावाले के नेतृत्व में उग्र सिखों ने हिन्दुओ को मारना शुरू कर दिया। उन्होंने पंजाब के कई बड़े नेताओं को भी मार डाला। तब परिस्थिति को काबू में करने के लिए इंदिरा गांधी ने भिंडरावाले को पकड़ने का प्लान बनाया।

भिंडरावाले ने हथियार स्वर्ण मंदिर में रखवा दिए। उसे लगा कि ऐसे पवित्र स्थान पर सैनिकों को भी भेजा नहीं जाएगा और किसी को शक भी नहीं होगा लेकिन इंदिरा गाँधी ने सेना को वहां जाने के लिए अनुमति दे दी। 6 जून 1984 को सेना ने स्वर्ण मंदिर के प्रवेश किया और गोलीबारी में उनका प्रमुख भिंडरावाले मारा गया।

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इस घटना से सिख नाराज हो गए क्योकिं स्वर्ण मंदिर में सैनिकों को भेजना एक अपमान था। तब सारे सिख इंदिरा के खिलाफ हो गए और उनके खुद के सिक्योरिटी गार्ड्स भी सिख थे। किसी ने उन्हें हटाने के लिए भी इंदिरा को सलाह दी थी लेकिन इंदिरा नहीं मानी और 31 अक्टूबर 1984 को इंदिरा गांधी को गोली मार दी गयी।

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