जब हिंदुस्तान के प्रधानमंत्रियों की तस्वीरें लोगों को कभी याद आती है, उसमें एक चेहरा बलिया के बाबू साहब यानि चंद्रशेखर का भी दिखता है। युवा चंद्रशेखर 1951 में सोशलिस्ट पार्टी के फुल टाइम वर्कर बन चुके थे। उन दिनों सोशलिस्ट पार्टी के लंबरदार राम मनोहर लोहिया थे। यह बात सभी जानते हैं कि स्पष्टवादिता और तीखे तेवर के चलते चंद्रशेखर की ज्यादा लोगों से पटती नहीं थी। जहां तक सोशलिस्ट पार्टी की बात है, इसमें राम मनोहर लोहिया, आचार्य नरेंद्र देव, अच्यूत पटवर्धन और चंद्रशेखर सहित देश के कई प्रख्यात समाजवादियों की जमात थी।

सोशलिस्ट पार्टी टूटी तो चंद्रशेखर ने कांग्रेस ज्वाइन कर लिया। लेकिन इनके बगावती तेवर कांग्रेस में भी जारी रहे। कहा जाता है कि इंदिरा गांधी ने चंद्रशेखर की बदौलत देश के कद्दावर नेताओं को अपने आगे झुकने के लिए मजबूर कर दिया।
लेकिन जब 1975 में इमरजेंसी लागू हुई तो चंद्रशेखर उन कांग्रेसी नेताओं में से एक थे, जिन्हें विपक्षी नेताओं के साथ जेल में बंद कर दिया गया।

इमरजेंसी खत्म होने के बाद विपक्षी दलों के साथ मिलकर बनाई गई जनता पार्टी के अध्यक्ष बने चंद्रशेखर। जब केंद्र में जनता पार्टी की सरकार बनी तो उन्होंने कोई मंत्री पद लेने से इनकार कर दिया। सत्ता संघर्ष के बाद आखिरकार वह दिन आ ही गया जब चंद्रशेखर को देश का प्रधानमंत्री बनने का मौका मिला। दरअसल 1990 में भाजपा की समर्थन वापसी के बाद विश्वनाथ प्रताप सिंह की सरकार गिर गई। इसके बाद चंद्रशेखर की अगुवाई में 64 सांसदों का धड़ा जनता दल से अलग हो गया।

राजीव गांधी यानि कांग्रेस के समर्थन पर चंद्रशेखर ने सरकार बनाने का दावा पेश किया। प्रधानमंत्री बनने के बाद चंद्रशेखर ने कांग्रेस के हिसाब से चलने से मना कर दिया। लिहाजा सात महीने बाद ही कांग्रेस ने समर्थन वापसी की घोषणा कर दी। इस प्रकार सत्ता जाने के बाद चंद्रशेखर कई बार लोकसभा सांसद रहे। मगर उनकी राजनीतिक अहमियत धीरे-धीरे सांकेतिक बनकर रह गई।

Related News