प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की मानगढ़ में जनसभा से पहले यह माना जा रहा था कि पीएम मानगढ़ के मंच से मानगढ़ धाम को राष्ट्रीय तीर्थ की घोषणा करेंगे। लेकिन ऐसा नहीं हुआ जिसके कारण राजस्थान सहित चार राज्यों के मेवाड़ और वागड़ के आदिवासियों को निराशा हाथ लगी है। आदिवासी नेताओं का कहना है कि भाजपा के राष्ट्रीय स्तर के नेता भी मानगढ़ धाम को राष्ट्रीय तीर्थ का दर्जा नहीं दिला पाए।

वागड़ और मेवाड़ के आदिवासियों में निराशा

प्रधानमंत्री मोदी के भाषण के अंतिम समय तक उन्हें भरोसा था कि मानगढ़ को राष्ट्रीय तीर्थ का दर्जा मिलेगा लेकिन भाषण की समाप्ति के बाद जनसभा में शामिल लोगों में खलबली मच गई। हालांकि भाजपा नेताओं का कहना है कि प्रधानमंत्री मोदी ने मंच से यह कहा कि राजस्थान, गुजरात, मध्यप्रदेश और महाराष्ट्र की सरकार मिलकर मानगढ़ धाम को लेकर योजना बनाएं तो केंद्र सरकार अवश्य मदद करेगी। उन्होंने कहा कि मानगढ़ धाम को राष्ट्रीय तीर्थ घोषित किए जाने की राह अभी भी खुली है।


कांग्रेस ने भाजपा पर बोला हमला

इधर, कांग्रेस से जुड़े आदिवासी नेता रघुवीर सिंह मीणा का कहना है कि मंच से मुख्यमंत्री गहलोत ने ही नहीं, बल्कि भाजपा नेताओं ने भी मानगढ़ धाम को राष्ट्रीय तीर्थ घोषित किए जाने की मांग की लेकिन प्रधानमंत्री ने उनकी बात पर ध्यान नहीं दिया। मानगढ़ धाम ट्रस्ट से जुड़े महेंद्रजीत सिंह मालवीया का कहना है कि यदि मानगढ़ धाम को राष्ट्रीय तीर्थ घोषित किया जाता तो यह आजादी के आंदोलन में शहीद आदिवासियों के लिए सच्ची श्रद्धांजलि होती। खुद केंद्र सरकार के प्रतिनिधि इस बात को लेकर आश्वस्त थे कि प्रधानमंत्री मानगढ़ धाम को राष्ट्रीय तीर्थ घोषित करेंगे। उन्हें भी निराशा हाथ लगी है। अब उन्हें जनता में जबाव देना है।


आदिवासी परिवार संघ का बढ़ता प्रभाव

मेवाड़-वागड़ क्षेत्र में आदिवासी परिवार संघ का प्रभाव बढ़ता जा रहा है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की मंगलवार को मानगढ़ में जनसभा से एक दिन पहले सोमवार को आदिवासियों के प्रयागराज के नाम से मशहूर तीर्थ बेणेश्वर में आदिवासी परिवार संघ ने बैठक रखी थी। इसमें हजारों आदिवासियों ने भाग लिया था। आदिवासी संघ ने आगामी विधानसभा चुनाव में इस बार मैदान उतरने की घोषणा से भाजपा और कांग्रेस में पहले से खलबली मची है। गत विधानसभा में आदिवासी परिवार ने बीटीपी प्रत्याशियों को समर्थन दिया था और डूंगरपुर जिले की दो विधानसभाओं में उसे जीत हांसिल हुई। इस बार आदिवासी परिवार संघ ने मेवाड़ वागड़ की 17 विधानसभा सीटों में से दस पर जीत हांसिल करने का लक्ष्य रखा है।


ब्रिटिश शासनकाल के जघन्य नरसंहार का गवाह
मानगढ़ ब्रिटिश शासनकाल के जघन्य नरसंहार का गवाह है। 17 नवंबर 1913 को अंग्रेजों ने अचानक निहत्थे आदिवासियों पर फायरिंग कर दी थी। उस वक्त, हजारों आदिवासी मानगढ़ पहाड़ी पर गुरु गोविंद की सभा में जुटे थे। तभी ब्रिटिश सैनिकों ने चारों ओर से घेरकर अचानक फायरिंग शुरू कर दी। बताया जाता है कि इस नरसंहार में करीब 1500 आदिवासियों की हत्या कर दी गई थी।

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