सरदार वल्लभ भाई पटेल ने इन खास मुद्दों पर जवाहरलाल नेहरू को दी थी करारी शिकस्त
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दोस्तों, आपको जानकारी के लिए बता दें कि देश के पहले गृहमंत्री सरदार वल्लभ भाई पटेल और प्रथम प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू के बीच वैचारिक मतभेद भारतीय राजनीति में किसी से छुपे नहीं है। आजादी के बाद कांग्रेस पार्टी में प्रत्यक्ष तथा अप्रत्यक्ष रूप से दो गुट बन चुके थे।
कांग्रेस पार्टी जब केंद्रीय सत्ता में आई तब कई ऐसे मौके देखे गए जब अपने-अपने विचारों को स्थापित करने के लिए गुटबाजी सक्रिय हो उठती थी। अपनी मौत से पहले सरदार वल्लभ भाई पटेल ने इस गुटबाजी तथा मतभेद के बारे में खुलकर बयान दिए थे।
इंडिया-फ्राम कर्जन टू नेहरू एंड आफ्टर के लेखक दुर्गादास ने अपनी इस किताब में पंडित जवाहरलाल नेहरू तथा सरदार वल्लभ भाई पटेल के बीच उपजे वैचारिक मतभेद और संघर्ष को जबरदस्त तरीके से रेखांकित किया है।
पुस्तक इंडिया-फ्राम कर्जन टू नेहरू एंड आफ्टर के मुताबिक, सरदार वल्लभ भाई पटेल ने अपनी मृत्यु से कुछ ही दिन पहले यानि दिसंबर 1950 में मुंबई में एक पत्रकार से कुछ इस प्रकार से अपनी पीड़ा व्यक्त थी- मैंने नेहरू से स्नेह किया, लेकिन मुझे उनका स्नेह कभी नहीं मिला। पंडित नेहरू को उनके दरबारी गलत राह पर ले जा रहे हैं। मैं भविष्य को लेकर चिंतित हूं।
दोस्तों, इस स्टोरी में हम आपको बताने जा रहे हैं कि पंडित जवाहरलाल नेहरू के कड़े विरोध के बावजूद इन खास मुद्दों पर सरदार पटेल के गुट की जीत हुई थी।
प्रथम राष्ट्रपति चुनाव
देश आजाद हो चुका था, ऐसे में प्रथम राष्ट्रपति का चुनाव होना तय था। देश की राजनीति से लेकर संसद तक में कांग्रेस पार्टी का वर्चस्व था। लेकिन राष्ट्रपति पद के उम्मीदवार को लेकर कांग्रेस पार्टी के अंदर नेहरू और पटेल गुट आमने-सामने आ गए। पंडित जवाहरलाल नेहरू का गुट राजगोपालाचारी को देश का प्रथम राष्ट्रपति बनाना चाहता था। लेकिन सरदार पटेल का गुट राजेंद्र प्रसाद के पक्ष में था। बता दें कि राजेंद्र प्रसाद इस पद के प्रबल दावेदार थे। आखिरकार ऐसा सियासी माहौल बना कि राजेंद्र प्रसाद देश के प्रथम राष्ट्रपति निर्वाचित किए गए। इसे पटेल गुट की जीत के रूप में देखा गया। इसके बाद पंडित जवाहरलाल नेहरू तथा सरदार वल्लभ भाई पटेल गुट के बीच कई मतभेद उभरकर सामने आए।
नासिक अधिवेशन की अध्यक्षता को लेकर कृपलानी और टंडन विवाद
बता दें कि साल 1950 में कांग्रेस पार्टी का नासिक में राष्ट्रीय अधिवेशन था। इस खास मौके पर अधिवेशन की अध्यक्षता को लेकर कृपलानी और पुरुषोत्तमदास टंडन का नाम उभरकर सामने आया। बताया जाता है कि जहां कृपलानी को नेहरू का आर्शीवाद प्राप्त था वहीं पुरुषोत्तमदास टंडन की करीबी सरदार वल्लभ भाई पटेल से थी।
इस चुनाव में एक बार फिर से पटेल गुट की जीत हुई और पुरुषोत्तमदास टंडन को अधिवेशन का अध्यक्ष बनाया गया। कांग्रेस पार्टी में गुटबाजी और कटुता इतनी चरम पर थी कि पुरुषोत्तमदास टंडन ने नेहरू के करीबी किदवई को कार्रकारिणी का सदस्य बनाने से साफ मना कर दिया था।
पंडित नेहरू की इच्छा के विरूद्ध जाकर राजेंद्र प्रसाद ने किया यह खास कार्य
पंडित जवाहरलाल नेहरू और सरदार पटेल की बीच गुटबाजी कितनी चरम पर थी, यह अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि पटेल के निधन के बाद नेहरू नहीं चाहते थे कि राष्ट्रपति राजेंद्र प्रसाद उनके अंतिम संस्कार में हिस्सा लें। इस बारे में जवाहरलाल नेहरू ने तर्क दिया था कि एक मंत्री के अंतिम संस्कार में राष्ट्र प्रमुख को भाग नहीं लेना चाहिए। लेकिन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू की इच्छा के विपरीत जाकर राजेंद्र प्रसाद सरदार पटेल के अंतिम संस्कार में शामिल हुए थे।