इंटरनेट डेस्क। आजादी ​के दिनों में देश के दो ​दलित राजनेताओं का नाम आज भी बड़े आदर से लिया जाता है। इनमें पहला नाम डॉ. भीमराव अंबेडकर का है, तो दूसरा नाम बाबू जगजीवन राम का। बता दें कि बाबू जगजीवन राम एक मात्र ऐसे नेता हैं, जिनके नाम सबसे ज्यादा समय तक कैबिनेट मंत्री बने रहने का रिकॉर्ड है। बाबू जगजीवन राम दो बार प्रधानमंत्री बनते-बनते रह गए।

बिहार के भोजपुर में जन्मे जगजीवन राम दलित राजनीति के नाम पर कांग्रेस पार्टी में डॉ. अंबेडकर के पूरक बनकर रहे। साल 1946 में जब पंडित नेहरू की अगुवाई में जब अंतरिम सरकार बनी, उस समय जगजीवन राम को लेबल मिनिस्टर बनाया गया था। 6 जुलाई 1986 को जगजीवन राम का निधन हो गया। लेकिन वह अपने ​आखिरी दिनों तक बतौर सांसद संसद में बैठते रहे।

आज हम आपको इस स्टोरी में पंडित मदन मोहन मालवीय और बाबू जगजीवन राम से जुड़ा एक ​किस्सा बताने जा रहे हैं। जी हां, यह बात उन दिनों की है जब जगजीवन राम बिहार के आरा स्थित एक स्कूल में पढ़ते थे। इस स्कूल कार्यक्रम में बतौर अतिथि पंडित महामना मदन मोहन मालवीय उपस्थित हुए थे। इस कार्यक्रम में छात्र जगजीवन राम ने एक स्वागत भाषण दिया था।

इस भाषण से मालवीय जी इतने प्रभावित हुए कि उन्होंने छात्र जगजीवन राम को बीएचयू में पढ़ने के लिए आमंत्रित किया था। जब जगजीवन राम बीएचयू पढ़ने के लिए आए तब उन्हें बिड़ला स्कॉलरशिप तो दे दी गई, लेकिन जबरदस्त जातिगत भेदभाव का सामना करना पड़ा।

आप इसी बात से अंदाजा लगा सकते हैं कि बनारस का कोई भी नाई जगजीवन राम का बाल काटने को तैयार नहीं हुआ था। इसके बाद बनारस से 80 किमी. दूर गाजीपुर से नाई उनका बाल काटने के लिए आता था। जगजीवराम को बीएचयू के मेस में बैठने की इजाजत नहीं थी, इतना ही नहीं उन्हें कोई भी शख्स खाना परोसने के लिए राजी नहीं हुआ था।

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