1971 के युद्ध में पाकिस्तान की सेना छंब सेक्टर में भारी गोलाबारी करते हुए आगे की तरफ बढ़ रही थी। दुश्मन की सैन्य रणनीति यह थी कि जम्मू कश्मीर को भारत से बिल्कुल अलग-थलग कर दिया जाए। पाकिस्तान की सेना छंब सेक्टर सहित अखनूर पर कब्जा जमाने की मंशा से जोरदार हमले कर रही थी, लेकिन भारतीय सेना के वीर जवानों ने दुश्मन के नापाक मंसूबे को विफल कर दिया।

इस शौर्यगाथा के गवाह कैप्टन बाना सिंह करीब 60 जवानों के साथ छंब सेक्टर में डटे हुए थे। बाना के मुताबिक, चूंकि हमारी संख्या बहुत कम थी, लिहाजा गोलियों से छलनी होने के बावजूद भी हमारी सेना के जवान अपनी शहादत तक मोर्चे पर डटे रहे और दुश्मन को पीछे धकेलने पर मजबूर कर दिया।

छंब सेक्टर में पाकिस्तानी आक्रमण के दौरान इंडियन आर्मी के लांस नायक अमरनाथ ने वीरता का ऐसा नूमना पेश किया कि दुश्मन भौचक्का रह गया। कैप्टन बाना सिंह कहते हैं कि हमारी संख्या केवल 60 थी, जबकि दुश्मन हमसे तीन गुना अधिक थे। ठंड का मौसम था, ऐसे में साथियों के घावों से बहने वाले गर्म खून को रोकने की कोशिशें जारी थी। इसी बीच मोर्चे पर तैनात लांस नायक अमरनाथ के पेट में दुश्मन की इतनी गोलिया लगी थीं, कि उनकी सारी आंतें बाहर आ गई थी। हम सभी ने अमरनाथ की आंतों को पेट में डालकर तौलिए से बांध दिया था।

इस दौरान अमरनाथ ने कहा कि अब मेरा अंतिम समय आ चुका है, ऐसे में मुझे एलएमजी के साथ मोर्चे तक पहुंचा दें, बाकी मैं देख लूंगा। बुरी तरह से घायल अमरनाथ का हौंसला देखते ही बनता था। अमरनाथ दुश्मनों पर तब तक एलएमजी से आग बरसाते रहे, जब तक कि वह शहीद नहीं हो गए।

कैप्टन बाना सिंह बहुत गर्व से कहते हैं कि लांस नायक अमरनाथ से मिली प्रेरणा की बदौलत मैं सियाचिन में दुश्मन को नाकाम करने में सफलता हासिल कर सका। मैं उस जांबाज के जज्बे को सलाम करता हूं।

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