इंटरनेट डेस्क। मोबाइल फोन, इंटरनेट के चलते चिट्ठियों का चलन अब बहुत कम हो चुका है। लेकिन एक ऐसा भी वक्त था जब भारतीय सैनिक के घर से आई चिटिठयां उसे अपने घरवालों के नजदीक होने का अहसास दिलाती थी। आज भी जब कभी जब वह युद्ध के मोर्चे पर होता है, तब वह इन चिट्ठियों को अपने सीने से लगाए घूमता रहता है। सैनिकों के शहादत के बाद उसके बक्से से जो भी सामान मिलते हैं, उनमें सबसे खास होती हैं उनकी चिट्ठियां।

1962 के चीन युद्ध तथा 1965 और 1971 में पाकिस्तान के साथ हुए युद्ध में डाक सेवा ने सराहनीय भूमिका निभाई थी। डाक सेवा के इस महत्वपूर्ण भूमिका के बाद इसे 1 मार्च 1972 को स्वतंत्र रूप से डाक सेना विभाग में स्थापित कर दिया गया। 10 मार्च 1972 को ब्रिगेडियर डी.एस.व्रिक डाक सेना कोर के पहले महानिदेशक बनाए गए। डाक सेना विभाग का प्रतीक चिन्ह उड़ता हुआ हंस है।

डाक सेना विभाग का प्रुमख वाक्य है-मेल मिलाप। शांतिकाल हो या फिर युद्ध की विषम परिस्थितियां भारतीय डाक सेना विभाग तंबूओं, ट्रकों, सेना के बंकरों में बड़ी शिद्दत के साथ अपने काम को अंजाम देता है। भारतीय डाक सेना दुनिया की सबसे समर्पित और तेज डाक सेवा मानी जाती है। सियाचिन से लेकर विदेशों में भी सेवाएं दे रहे भारतीय सैनिकों को उनकी चिट्ठियां उतनी ही तत्परता से पहुंचाती है डाक सेना।

गौरतलब है कि भारतीय डाक सेना 12 लाख से अधिक अर्धसैनिक बलों सहित भारतीय थल सेना, वायु सेना तथा नौ सेना के लिए सभी डाक सुविधाएं मुहैया करवाती है। दुनिया के सबसे ऊंचाई पर मौजूद हिमाचल प्रदेश के सिक्किम डाकघर में भारतीय सैनिकों के लिए उतनी ही तेजी से चिटिठयां पहुंचाई जाती हैं, जितनी कि खुले मैदान में। डाक सेना का यह केंद्र 15,500 फीट की ऊंचाई पर स्थित है।

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