देश में लंबे समय से राजनीतिक दलों को प्राप्त होने वाले चंदे में पारदर्शिता लाने की मांग की जा रही है। अधिकांश लोग इसके पक्ष में है कि जिस तरह से मतदाताओं को अपने प्रत्याशी के चरित्र को जानने का अधिकार प्राप्त है, उसी तरह राजनीतिक दलों को मिलने वाले चंदे के बारे में भी उन्हें जानकारी मिलनी चाहिए कि किसी दल विशेष को कितना चंदा और वह किस माध्यम से मिला है।

राजनीतिक दलों को चंदे के रूप में कमाई

भारत के मुख्य चुनाव आयुक्त राजीव कुमार ने केंद्रीय विधि मंत्री किरण रिजिजू को पत्र लिखकर जनप्रतिनिधित्व अधिनियम में ऐसे सुधार करने की आवश्यकता जताई है, जिससे मनमाने चंदे पर लगाम लग सके। हालांकि कुछ वर्षों पूर्व निर्वाचन बांड को लागू करते समय यह उम्मीद जगी थी कि राजनीतिक दलों को चंदे के रूप में जो कमाई होती है, जिसके बारे में कई बार अवैध होने का भी आरोप लगता है, उस पर अंकुश लग जाएगा। लेकिन सभी प्रमुख दलों के चंदे के ग्राफ में उत्तरोत्तर वृद्धि होने के आंकड़े सामने आए हैं।

चुनाव आयोग ने अपने पत्र में कहा है कि राजनीतिक दलों को नकद चंदे के रूप में जो भी धन मिलता है, उसकी एक अधिकतम सीमा निर्धारित की जाए। इस नाते चुनावों में काले धन के चलन पर लगाम के लिए नामी-बेनामी नकद चंदे की सीमा 20 हजार रुपये से घटाकर मात्र दो हजार रुपये कर दी जाए। वर्तमान नियमों के अनुसार, राजनीतिक दल चुनाव आयोग को 20 हजार रुपये से अधिक चंदे की राशि का पर्दाफाश करते हैं।

चुनावी चंदे में यदि यह व्यवस्था लागू हो जाती है तो दो हजार रुपये से अधिक चंदे में मिलने वाली राशि की जानकारी दलों को देनी होगी, परिणामस्वरूप एक हद तक पारदर्शिता रेखांकित होगी। इस सिलसिले में आयोग यह भी चाहता है कि चुनाव के दौरान प्रत्याशी का बैंक में पृथक खाता होना चाहिए, जिसमें समस्त लेन-देन दर्ज हो। आयोग ने यह सिफारिश ऐसे समय की है, जब उसे 284 ऐसे दलों को राजनीतिक दल के रूप में पंजीकृत सूची से इसलिए हटाना पड़ा, क्योंकि उन्होंने चंदे के लेन-देन से जुड़े नियमों का पालन नहीं किया था।

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