राजीव गांधी की मौत के बाद प्रियंका ने मां से राहुल के लिए कही थी ये बात
1991 में राजीव गांधी की हत्या के बाद कैप्टन सतीश शर्मा को अमेठी से लोकसभा चुनाव लड़ने का अवसर मिला था। 27 साल की उम्र में ही प्रियंका गांधी ने अमेठी और रायबरेली में कांग्रेस का चुनाव प्रचार का जिम्मा संभाल रखा था। पिता राजीव गांधी के साथ रायबरेली और अमेठी का दौरा करते करते हुए वहां की जनता के लिए प्रियंका गांधी इंदिरा का दूसरा रूप चुकी थीं।
प्रियंका गांधी अपने पिता और दादी के तर्ज पर ही छोटी-छोटी जनसभाएं की थीं। इस चुनावी मुकाबले में ना केवल सतीश शर्मा विजयी रहे बल्कि अरुण नेहरु को बुरी हार का सामना करना पड़ा था। यह सच है कि 1991 में रायबरेली में प्रियंका गांधी का पहला भाषण राजनीति में डेब्यू था। मतलब साफ है, सियासत से उनकी पहली मुठभेड़ तो 1991 में ही शुरू हो गई थी।
बता दें कि राजीव गांधी की मौत के बाद 10 जनपथ को किले की तरह तब्दील कर दिया गया था। घर के किसी सदस्य को आवास से बाहर जाने की इजाजत नहीं थी। 10 जनपथ में मिलने वालों का तांता लगा हुआ था। दुनिया के कोने-कोने से सांत्वना भरे खत आ रहे थे। सोनिया गांधी अंदर से पूरी तरह से टूट चुकी थीं, ऐसे में उनको सबसे ज्यादा सहारा दिया उनकी बेटी प्रियंका गांधी ने।
पिता की मौत ने प्रियंका को भी पूरी तरह से बदलकर रख दिया था। वह अखबारों में अपने पिता के बारे में छपी एक-एक लाइन नोट किया करती थीं। अमेठी से आने वाले लोगों से भी मिलती थीं। संवेदना से भरे खतों का जवाब लिखतीं। बता दें कि उन दिनों राहुल गांधी हार्वड में पढाई कर रहे थे। अब पिता की मौत के बाद यह तय नहीं हो पा रहा था कि आगे की पढ़ाई के लिए राहुल हार्वड जाएंगे भी या नहीं। उस वक्त प्रियंका गांधी ने सभी को जोर देकर कहा कि राहुल को अपनी पढ़ाई जारी रखने के लिए वापस चले जाना चाहिए और माँ को मैं अकेले संभाल लूंगी।
एक बार इंटरव्यू में प्रियंका गांधी ने कहा था कि 16-17 साल की उम्र में मुझे यह लगता था कि मुझे जिंदगी में राजनीति ही करनी है। लेकिन राजनीति में इतना कुछ देखने और सहने के बाद मैंने यह तय किया कि मैं राजनीति में नहीं जाउंगी। गौरतलब है कि 7 साल के भीतर गांधी परिवार के दो लोगों की हत्या हो चुकी थी