कैप्टन रॉड्रिक ब्रिग्स ब्रिटीश ईस्ट इंडिया कंपनी का ऐसा पहला शख्स था, जिसने रानी लक्ष्मीबाई को अपनी आँखों से लड़ाई के मैदान में लड़ते हुए देखा। कैप्टन रॉड्रिक ब्रिग्स के मुताबिक, रानी लक्ष्मीबाई ने घोड़े की लगाम अपने दाँतों से दबाई हुई थी तथा दोनों हाथों से तलवार चला रही थी। रेनर जेरॉस्च की किताब द रानी ऑफ़ झाँसी, रेबेल अगेंस्ट विल के मुताबिक, रानी मध्यम कद की महिला थीं, लेकिन पूरी तरह से स्वस्थ। उनके चेहरे पर आकर्षण था, लेकिन उनका चेहरा पूरी तरह से गोल था। सिवाय सोने के बालियों के उन्होंने एक भी ज़ेवर नहीं पहन रखा था। आंखे सुंदर थी और उनकी नाक भी काफी नाजुक थी। वह सफेद मलमल की साड़ी पहनती थीं, जिससे उनके शरीर का रेखांकन स्पष्ट नजर आता था। केवल एक ही चीज उनके व्यक्तित्व को बिगाड़ती थी, वह थी उनकी फटी हुई आवाज।

खैर जो भी रानी लक्ष्मीबाई के दत्तक पुत्र दामोदर को अंग्रेजी साम्राज्य द्वारा अवैध घोषित किए जाने के बाद युद्ध होना लाजिमी था। फिर क्या था, कैप्टन रॉड्रिक ब्रिग्स ने तय किया कि वो ख़ुद आगे जा कर रानी पर हमला करेंगे। युद्ध के दौरान कैप्टन रॉड्रिक जब भी ऐसा करने की कोशिश करते रानी के घुड़सवार उन्हें ऐसा करने से रोक देते थे। कुछ सैनिकों को घायल करने और मारने के बाद रॉड्रिक ने अपने घोड़े को एड़ लगाई और रानी की तरफ़ बढ़ चले थे। ठीक उसी दौरान रॉड्रिक के पीछे से जनरल रोज़ निपुण ऊंट की टुकड़ी ने युद्ध मैदान में एंट्री की। इसके बाद युद्ध मैदान में रानी के सैनिकों की संख्या धीरे-धीरे कम होनी शुरू हो गई। जॉन हेनरी सिलवेस्टर ने अपनी किताब रिकलेक्शंस ऑफ़ द कैंपेन इन मालवा एंड सेंट्रल इंडिया में लिखा है कि तब अचानक रानी जोर से चिल्लाई, मेरे पीछे आओ। तभी 15 घुड़सवारों का एक दल उनके पीछे हो लिया। अंग्रेज कुछ समझ पाते, इससे पहले ही रानी युद्ध मैदान से बाहर निकल चुकी थीं।

रॉड्रिक ने चिल्लाते हुए कहा, दैट्स दि रानी ऑफ़ झाँसी, कैच हर। रानी अभी युद्ध मैदान से एक मील दूर कोटा की सराय पहुंची थीं, तभी उनके पीछे कैप्टेन ब्रिग्स के घुड़सवार पहुंच चुके थे। युद्ध फिर शुरू हो गया। रानी के एक सैनिक से दो ब्रिटीश सैनिक लड़ रहे थे। इस दौरान अचानक किसी अंग्रेज सैनिक ने उनके सीने में संगीन भोंक दी थी। हालांकि रानी को बहुत गहरी चोट नहीं लगी थी, इसलिए वह तलवार लेकर अपने ऊपर हमला करने वाले पर टूट पड़ी। उन्होंने खुद को सुरक्षित करने के लिए घोड़े को ऐड़ लगाई, कुछ दूरी तय करने के बाद एक छोटा-सा पानी का झरना आ गया। उन्होंने सोचा कि उनका घोड़ा इस पानी के झरने को पार कर लेगा, फिर उन्हें कोई नहीं पकड़ सकेगा। लेकिन घोड़ा अपनी जगह से टस से मस नहीं हुआ। तभी उनकी कमर पर किसी ने बहुत तेजी से वार किया। दरअसल उनको राइफ़ल की एक गोली लगी थी। गोली लगते ही रानी के बांए हाथ की तलवार छूट कर ज़मीन पर गिर गई।

एंटोनिया फ़्रेज़र अपनी पुस्तक द वॉरियर क्वीन में लिखती हैं कि जैसे ही एक अंग्रेज ने रानी पर वार करने के लिए अपनी तलवार ऊपर उठाई, फिर रानी ने भी उस वार को रोकने के लिए दाहिने हाथ में पकड़ी अपनी तलवार ऊपर की। उस अंग्रेज की तलवार उनके सिर पर इतनी तेजी से लगी कि रानी लक्ष्मीबाई का माथा फट गया और उसमें से निकले वाले खून से वह लगभग अंधी हो गईं। हांलाकि रानी ने उस अंग्रेज सैनिक पर जवाबी वार किए, लेकिन वो केवल उसके कंधे को ही घायल कर सकीं। देखते ही देखते रानी घोड़े से नीचे गिर गईं।

तभी उनके सैनिक ने घोड़े से कूदकर उन्हें अपने हाथों में उठा लिया और पास के मंदिर में ले गया, तब तक रानी ​जीवित थीं। मंदिर के पुजारी ने उनके गले में गंगाजल डाला। मंदिर के अहाते के बाहर अंग्रेजों की फायरिंग जारी थी। रॉड्रिक ने ज़ोर से चिल्लाकर कहा कि वे लोग मंदिर के अंदर गए हैं, उन पर हमला करो। रानी अभी भी जिंदा है। मंदिर के पुजारी रानी के लिए अंतिम प्रार्थना कर रहे थे। रानी ने बुदबुदाते हुए कहा— दामोदर... मैं उसे तुम्हारी... देखरेख में छोड़ती हूँ... उसे छावनी ले जाओ... दौड़ो उसे ले जाओ। उन्होंने कहा कि मेरा शरीर अंग्रेजों को नहीं मिलना चाहिए। इतने में वहां मौजूद रानी के अंगरक्षकों ने आनन-फ़ानन में कुछ लकड़ियाँ जमा की और उन पर रानी के पार्थिव शरीर को रख आग लगा दी थी। जब तक अंग्रेज मंदिर में प्रवेश करते तब तक रानी का मृत शरीर पूरी तरह से जल चुका था, चिता पर केवल राख बची थी।

कैप्टन क्लेमेंट वॉकर हेनीज ने युद्ध के अंतिम क्षणों का वर्णन करते हुए लिखा है कि महज कुछ सैनिकों से घिरी ओर हथियारों से लैस एक महिला युद्ध में जान फूंकने की कोशिश कर रही थी। वह बार इशारों और तेज आवाज से हार रहे सैनिकों का मनोबल बढ़ा रही थी, लेकिन उसका कुछ खास असर नहीं हो रहा था। कुछ ही मिनटों में हमने उस महिला पर काबू पा लिया। एक सैनिक की कटार का तेज़ वार उसके सिर पर पड़ा और सब कुछ खत्म हो गया। वह महिला कोई और नहीं स्वयं रानी लक्ष्मीबाई थी। युद्ध के दो दिन बाद ग्वालियर के शासक जयाजीराव सिंधिया ने इस जीत की खुशी में जनरल रोज़ और सर रॉबर्ट हैमिल्टन के सम्मान में भोज का आयोजन किया था। रानी लक्ष्मीबाई की मृत्यु के बाद विद्रोहियों का साहस टूट गया और बड़ी आसानी से ग्वालियर पर अंग्रेज़ों का कब्ज़ा हो गया।

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