भारत का एक अनोखा गांव, जिसकी है अपनी संसद और अपना कानून!
आपको इस स्टोरी में हम भारत के एक ऐसे अनोखे गांव के बारे में बताने जा रहे हैं, जहां का अपना कानून है। इस गांव में 6 स्थल ऐसे हैं, जिन्हें छूने की सख्त मनाही है। जी हां, इस गांव का नाम है मलाणा। पर्वतीय आंचल हिमाचल प्रदेश के कुल्लू जिले में बसा एक खूबसूरत गांव मलाणा के निवासी आज भी भारत के संविधान को न मानकर अपनी हजारों साल पुरानी परंपरा को मानते हैं।
इस गांव के बड़े बुजुर्गों का मानना है कि बहुत समय पहले यहां ‘जमलू’ ऋषि नामक तपस्वी रहा करते थे, जिन्होंने यहां के नियम बनाए थे। बाद में इन नियमों को संसदीय कार्य प्रणाली के अनुरूप बदल दिया गया।
करीब 12000 फीट की ऊंचाई पर बसे मलाणा गांव की आबादी 4700 है। इस गांव की स्थानीय भाषा कणाशी है, जो दुनिया में यहीं बोली जाती है। इस गांव में पूरे वर्ष विदेशी सैलानियों की भीड़ लगी रहती है।
मालणा गांव की शासन व्यवस्था ठीक इसी अनुरूप है, जैसे किसी लोकतांत्रिक देश की होती है। इस गांव के अपने खुद के दो सदन हैं जिसमें एक छोटा सदन और एक बड़ा सदन। बड़े सदन में सदस्यों की संख्या 11 होती है, जबकि छोटे सदन में सदस्यों की संख्या 8 सदस्य होती है। इन दोनों सदनों में गांव के निवासी ही चुने जाते हैं। इसके अलावा तीन अन्य लोग जिसमें कारदार, गुरु और पुजारी स्थायी सदस्य होते है। इस सदन की खास बात यह है कि मलाणा के प्रत्येक सयुंक्त परिवार में से एक सदन का सदस्य जरूर होता है।
कानून व्यवस्था बनाए रखने के लिए इनके अपने कानून हैं। यहां गांव में दरोगा भी होते हैं, जिसमें राज्य सरकार ना के बराबर हस्तक्षेप करती है। मलाणा गांव के लोग जमलू ऋषि को अपना ईष्ट देवता मानते हैं। इन्ही का फैसला सच्चा और अंतिम माना जाता है। रहस्य से भरे इस गांव में बाहरी लोगों के कुछ भी छूने पर पाबंदी है। इसके लिए बकायदा नोटिस भी लगे हैं। जिसमें साफ तौर पर लिखा गया है कि किसी भी चीज को छूने पर हर्जाना देना होगा। छूने पर भुगतान राशि 1000 से लेकर 2500 रुपए तक है।