महाभारत महाकाव्य के अनुसार, श्रीकृष्ण के पास पाञ्चजन्य शंख, अर्जुन के पास देवदत्त, भीष्म के पास पोंड्रिक, युधिष्ठिर के पास अनंत विजय, नकुल के पास सुघोष और सहदेव के पास मणि पुष्पक शंख था। इन सभी शंखों का अपना महत्व था और इनकी शक्ति अलग-अलग थी।

हिंदू धर्मग्रंथों में पाञ्चजन्य शंख से जुड़ी अनेक रहस्यमयी बातों का वर्णन मिलता है। पौराणिक कथा के मुताबिक, समुद्र मंथन के दौरान दुर्लभ शंख पाञ्चजन्य की उत्पत्ति हुई थी। समुद्र मंथन से प्राप्त 14 रत्नों में से 6वां रत्न पाञ्चजन्य शंख था।

एक बार भगवान श्रीकृष्ण के गुरू पुत्र पुनरदत्त को एक दैत्य उठा ले गया। अब पुनरदत्त को लेने के लिए वे दैत्य नगरी गए। उन्होंने वहां देखा कि एक शंख में वह दैत्य सोया हुआ है। श्रीकृष्ण ने उस दैत्य को मारकर शंख अपने पास रख लिया। इसके बाद उन्हें पता चला कि उनका गुरू पुत्र तो यमपुरी चला गया है। इ​सलिए श्रीकृष्ण भी यमपुरी चले गए। जब यमपुरी में यमदूतों ने श्रीकृष्ण को अंदर नहीं जाने दिया तब उन्होंने शंख का नाद किया जिससे यमलोक हिलने लगा।

इसके यमराज ने स्वयं श्रीकृष्ण को उनके गुरु के पुत्र की आत्मा को लौटा दिया। इस प्रकार भगवान श्रीकृष्ण अपने गुरू के पुत्र पुनरदत्त के साथ धरती पर लौट आए। श्रीकृष्ण ने पुनरदत्त के साथ उस शंख को भी अपने गुरू के समक्ष प्रस्तुत कर दिया। इसके बाद उनके गुरू ने पाञ्चजन्य शंख को पुन: श्रीकृष्ण को देते हुए कहा कि यह तुम्हारे लिए ही है। गुरु की आज्ञा से उन्होंने पाञ्चजन्य शंख का नाद कर पुराने युग की समाप्ति और नए युग का प्रारंभ किया।

हिंदू धर्म में यह मान्यता है कि भगवान कृष्ण के पाञ्चजन्य शंख की ध्वनि कई मीलों तक सुनाई देती थी। कथा के मुताबिक, महाभारत युद्ध में पाञ्चजन्य शंख की ध्वनि से जहां पांडव सेना में उत्साह का संचार हो जाता था, वहीं इस शंख की ध्वनि से शत्रु सेना में भय व्याप्त हो जाता था।

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