राधा और श्रीकृष्ण के बीच प्यार अमर है। इस अटूट प्रेम के बावजूद भी राधा-कृष्ण का विवाह नहीं हो सका था। आम जनमानस के बीच आज भी ये सवाल उठते हैं कि श्रीकृष्ण ने राधा से शादी क्यों नहीं की, श्रीकृष्ण के वृंदावन से चले जाने पर राधा का क्या हुआ, उनका जीवन कैसे बीता और उनकी मृत्यु कैसे हुई?

हिंदू धर्म ग्रंथों में वर्णित है कि राधा की मृत्यु के समय श्रीकृष्ण उनके पास मौजूद थे। राधा के देह त्यागने के बाद श्रीकृष्ण ने अपनी बांसुरी तोड़ दी थी और फिर कभी भी बांसुरी नहीं बजाने का प्रण लिया था। आइए जानें, श्रीकृष्ण ने अपनी बांसुरी क्यों तोड़ दी थी।

राधा और श्रीकृष्ण का बचपन साथ बीता था। इनके बीच प्यार का एक अटूट रिश्ता बन गया। लेकिन एक समय ऐसा भी आया जब इन्हें एक दूसरे से अलग होना पड़ा। बता दें कि श्रीकृष्ण कंस का वध करने के लिए मथुरा को रवाना हुए थे, तब उन्होंने जल्द ही वापस आने का वादा किया था।

राधा ने काफी दिनों तक श्रीकृष्ण का इंतजार किया, लेकिन श्रीकृष्ण नहीं आए। कहा जाता है कि राधा के घरवालों ने उनकी शादी किसी यदुवंशी से करवा दी। विवाह के बाद राधा अपनी जिम्मेदारियां निभाती रहीं, लेकिन मन ही मन वो श्रीकृष्ण से प्रेम करती रहीं। श्रीकृष्ण के प्रति उनका प्रेम तनिक भी कम नहीं हुआ।

दूसरी तरफ श्रीकृष्ण का विवाह भी रुक्मिणी से हो गया। कंस सहित अनेक राक्षसों का वध करने के बाद श्रीकृष्ण ने द्वारिका को अपनी राजधानी बना ली और वहीं रहने लगे। इसीलिए श्रीकृष्ण का एक नाम द्वारकाधीश भी है। अपने सभी कर्तव्यों से मुक्त होने के पश्चात राधा एक बार श्रीकृष्ण से मिलने के लिए द्वारिका नगरी चली गईं। वहां पहुंचने पर राधा को श्रीकृष्ण के विवाह की जानकारी मिली, बावजूद इसके वे दुखी नहीं हुईं।

द्वारिका में श्रीकृष्ण के सिवाय राधा को कोई नहीं जानता था। श्रीकृष्ण ने जैसे ही राधा को देखा उनकी खुशियों का ठिकाना नहीं रहा। श्रीकृष्ण के साथ ज्यादा समय बिताने के लिए राधा ने उनसे उनके ही महल में रहने की आज्ञा मांगी। इसके बाद देविका के रूप में उनके महल में निवास करने लगीं।

राधा अब उनके महल में रहकर जिम्मेदारियां संभालने लगी। उन्हें जब भी अवसर मिलता वे श्रीकृष्ण का दर्शन कर लिया करती थीं। श्रीकृष्ण के करीब रहने के बावजूद राधा उनसे आध्यात्मिक जुड़ाव महसूस नहीं कर पा रही थीं, इसलिए उन्होंने महल से दूर जाने का निर्णय लिया। राधा अब द्वारिका से दूर जाकर रहने लगीं। समय के साथ-साथ राधा का स्वास्थ्य भी कमजोर पड़ने लगा।

जब उनका अंतिम समय नजदीक आ गया था, ऐसी परिस्थितियों में श्रीकृष्ण उनके पास पहुंच गए। श्रीकृष्ण ने राधा से उनकी मनोकामना पूछी। तब राधा ने उनसे आखिरी बांसुरी बजाने को कहा। राधा के कहने पर श्रीकृष्ण ने कई दिनों तक लगातार बांसुरी बजाते रहे। बांसुरी की धुन सुनते-सुनते ही राधा ने अपना शरीर त्याग दिया।

राधा की मृत्यु के बाद श्रीकृष्ण के दुख की सीमा न रही। वो इस बात को अच्छी तरह से जानते थे कि उनकी बांसुरी राधा को बहुत प्रिय थी। ऐसे में राधा के शरीर त्यागते ही उन्होंने अपनी बांसुरी तोड़कर झाड़ियों में फेंक दी और फिर कभी बांसुरी नहीं बजाई।

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