आखिर क्या था शाहबानो मामला, पढ़ें राजीव गांधी सरकार का निर्णय
इंटरनेट डेस्क। इंदिरा गांधी की हत्या के बाद 1984 में हुए लोकसभा चुनाव में देश की जनता ने कांग्रेस को जबरदस्त बहुमत प्रदान किया। 401 सीटों पर कांग्रेस को विजयश्री मिली। परिणामस्वरूप 31 अक्तूबर को 1984 को राजीव गांधी ने देश के प्रधानमंत्री पद की शपथ ली। इतनी बड़ी जीत कभी पं. जवाहर लाल नेहरू और इंदिरा गांधी को भी नसीब नहीं हुई।
साल 1978 में एक तलाकशुदा मुस्लिम महिला शाहबानो ने निचली अदालत में गुजरा भत्ता पाने की अपील की थी, जिसमें उसे कामयाबी मिली थी। इस फैसले के विरूद्ध वहीं उसके पति मोहमद आरिफ खान सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की थी। आरिफ खान ने सुप्रीम कोर्ट में यह हवाला दिया था कि इस्लामिक कानून के मुताबिक उसने तलाकशुदा पत्नी को तीन माह का गुजारा भत्ता दे दिया है।
1986 में सुप्रीम कोर्ट ने यह फैसला सुनाया कि किसी भी तलाकशुदा महिला को अपने पहले पति से गुजरा भत्ता पाने का अधिकार है। सुप्रीम कोर्ट ने अपना फैसला शाहबानो के पक्ष में सुनाया था। सुप्रीम कोर्ट के फैसले को मुस्लिम संगठनों ने इस्लामिक हमला करार दिया। देशभर में इसका विरोध होने लगा।
मुस्लिम वोट बैंक खिसकता देख राजीव गांधी सरकार ने फरवरी 1986 में मुस्लिम महिला बिल पास किया जिसमें इस्लामिक कानून को दंड संहिता से बाहर रखकर इस बिल के माध्यम से तलाकशुदा पत्नी के गुजारे की जिम्मेदारी उसके संबंधियों पर छोड़ दिया गया। पूर्व प्रेसिडेंट प्रणव मुखर्जी ने अपनी किताब द टर्बुलेंट ईयर्स : 1980-1996 में यह बात लिखी है कि शाह बानो प्रकरण में राजीव गांधी के निर्णय की आलोचना की गई, जिससे उनकी छवि धूमिल हुई।