हिंदू धर्म में हर महीना बहुत ही महत्वपूर्ण होता हैं, लेकिन अगर हम बात करें सावन की तो यह भगवान शिव के भक्तों के लिए बहुत ही महत्वपूर्ण हैं, इस दौरान भगवान शिव के भक्त अलग अलग अनुष्ठान करते हैं शिव की कृपा पाने के लिए। इस अवधि के दौरान प्रमुख प्रथाओं में से एक शिव लिंग पर रुद्राक्ष चढ़ाना है। "रुद्राक्ष" शब्द का अर्थ है 'रुद्र का आंसू', जो भगवान शिव को संदर्भित करता है, जिनके आंसुओं से इसकी उत्पत्ति मानी जाती है। जिसको पहनने से इंसान को सुख और समृद्धि प्राप्त होती हैं, लेकिन कुछ लोगो को रूद्राक्ष नहीं पहनना चाहिए, आइए जानते हैं इनके बारे में

Google

रुद्राक्ष का ऐतिहासिक और आध्यात्मिक महत्व

रुद्राक्ष को सदियों से न केवल आभूषण के रूप में बल्कि सुरक्षा, ग्रह शांति और आध्यात्मिक उत्थान में इसके प्रतिष्ठित लाभों के लिए भी महत्व दिया जाता रहा है।

विविधताएँ और उनका महत्व

रुद्राक्ष के 17 प्राथमिक प्रकार हैं, लेकिन 12 मुखी रुद्राक्ष विशेष रूप से पूजनीय है। इस प्रकार के रुद्राक्ष को विभिन्न तरीकों से पहना जा सकता है:

कलाई पर (12 मनकों की माला पहनने की सलाह दी जाती है)

गले के चारों ओर (36 मनकों की माला पहनने की सलाह दी जाती है)

Google

हृदय के ऊपर (108 मनकों की माला पहनने की सलाह दी जाती है)

वैकल्पिक रूप से, एक मनका लाल धागे में बांधकर हृदय के पास रखकर पहना जा सकता है।

रुद्राक्ष पहनने के लिए सर्वोत्तम अभ्यास

पहनने का समय: कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी या किसी भी सोमवार को रुद्राक्ष पहनना सबसे शुभ होता है।

Google

तैयारी: रुद्राक्ष पहनने से पहले, इसे भगवान शिव को अर्पित करना आवश्यक है। इसे धारण करने से पहले इसे माला में पिरोते हुए मंत्रों का जाप करना एक महत्वपूर्ण कदम है।

नियम और सावधानियां: इसके आध्यात्मिक लाभों को बनाए रखने के लिए, रुद्राक्ष पहनने वालों को मांस और शराब से परहेज करते हुए सात्विक जीवन शैली का पालन करना चाहिए।

Related News