गरुड़ पुराण में इस बारे में जिक्र किया गया है कि मरने के बाद आपको अगला जन्म किस रूप में मिलेगा। इसलिए आज हम आपको बताने जा रहे हैं कि कैसे पुरुषों को अगले जन्म में स्त्री रूप धारण करना पड़ता है।

गीता के अनुसार भगवान श्रीकृष्ण ने कहा है कि केवल शरीर का अंत होता है और आत्मा अजर- अमर है। आत्मा इसके बाद एक शरीर को छोड़ कर दूसरे शरीर को धारण कर लेते हैं। आत्मा का कोई जेंडर भी नहीं होता है। लेकिन ऐसे में कई बार मन में एक प्रश्न आता है कि आत्मा का तो कोई जेंडर नहीं है, फिर जन्म के समय ये कैसे निर्धारित होता होगा कि कौन सी आत्मा को पुरुष का शरीर मिलेगा और कौन सी आत्मा को स्त्री का ? इसके बारे में हम आपको बताने जा रहे हैं।


दो स्थितियों में पुरुष को अगले जन्म में बनना पड़ता है स्त्री
1. गरुड़ पुराण के अनुसार जब आत्मा को नया शरीर मिलता है तो चाहे उसे जन्म पुरुष का मिले या स्त्री का, आत्मा को उस शरीर के अनुरूप व्यवहार में ढलकर अपना कर्म करना होता है। आत्मा अपने जन्म को सार्थक और निरर्थक दोनों बना सकती है। अच्छे कर्म करके आत्मा मुक्ति के मार्ग की ओर अग्रसर हो सकती है और बुरे कर्म करने से भविष्य भी बुरा हो सकता है।

यदि कोई पुरुष महिलाओं वाला आचरण करता है, वह महिलाओं की तरह स्वभाव करता है और उनकी ही काम करना पसंद करता है तो ऐसे पुरुषों की आत्मा अगले जन्म में स्त्री का शरीर धारण करती है। वहीं कोई मनुष्य पशुओं की तरह बर्ताव करता है और उन्हीं चीजों का सेवन करता है, जिसका पशु सेवन करते हैं, तो उसे अगले जन्म में पशु बनना पड़ता है।

2. इसके अलावा गरुड़ पुराण के अनुसार मनुष्य के अंत समय में उसकी आसक्ति जिस चीज की ओर होती है, उसका अगला जन्म भी उसी पर निर्भर करता है। यदि कोई व्यक्ति ​मृत्यु के अंतिम क्षण में किसी स्त्री को याद करते हुए अपने प्राण त्याग करता है तो उसे अगले जन्म में स्त्री बनना पड़ता है। वहीं अगर वो अंतिम क्षण में परमेश्वर का नाम लेता है तो वो मुक्ति के मार्ग पर अग्रसर हो जाता है। यानी मृत्यु के अंतिम क्षण का विचार उसके अगले जन्म का आधार बनता है। इसलिए मरते समय परमात्मा का ही ध्यान करना चाहिए।


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