अक्सर हमारे साथ ऐसा होता है की जब हम सब जब बिना रुके हुए लगातार कोई काम करते हैं तो हमारे शरीर के कई ऐसे अंग होते है जो थक जाते हैं और जिन्हें आराम की सख्त जरूरत होती है। आज कल की इस भाग दौड़ भरी ज़िन्दगी में हर इन्सान अपने काम में व्यस्त है और मोबाइल या लैपटॉप पे जो लोग घंटो काम करते है वो लोग थक जाते है तब उन्हें अंगड़ाई लेने का मन करता है और अक्सर जब हम अंगड़ाई लेते है तो अपनी उंगलिया भी चटकाते हैं।


ऑफिस या मीटिंग में बैठे हों तो ऐसा करने में थोड़ा अटपटा भी लगता है। लेकिन ऐसा करने में मज़ा भी बहुत आता है और शायद आप को भी आता होगा| उंगुलियां चटकाने से उंगुलियां के आसपास के मसल्स को काफी आराम भी मिलता है इसलिए उंगुलियां चटकाने की आदत हर दूसरे इंसान को होती है लेकिन क्या आप को पता है की ऐसी आदत गठिया जैसे रोग को जन्म देती है।

दरअसल उंगलियों के जोड़ और घुटने और कोहनी के जोड़ों में एक खास प्रकार का लिक्विड पाया जाता है। इसका नाम होता है सिनोविअल फ्लूइड, ये लिक्विड हमारी हडि्डयों के जोड़ों में ग्रीस की तरह काम करता है। साथ ही हडि्डयों को एक दूसरे से रगड़ खाने से भी बचाता है ठीक वैसे ही जैसे गाड़ियों में ग्रीस डाला जाता है। उस लिक्विड में मौजूद गैस जैसे कार्बन डाई ऑक्साइड नई जगह बनाती है इससे वहां बुलबुले बन जाते हैं। जब हम अपनी उँगलियाँ चटकाते हैं तो वही बुलबुले फूट जाते हैं और तभी हमें कुट-कुट की आवाज़ सुने पड़ती है|

डॉक्टर्स की एक रिपोर्ट के मुताबिक हडि्डयां आपस में लिगामेंट से जुड़ी होती हैं और बार-बार उंगलियां चटकाने से उनके बीच होने वाला लिक्विड कम होने लगता है अगर ये पूरी तरह से ख़त्म हो जाए तो आपो गठिया हो सकता है इसके साथ ही यदि जोड़ों को बार-बार खींचा जाए तो हमारी हडि्डयों की पकड़ भी कम हो सकती है।

जब 1 बार जोड़ों में बने बुलबुले फूट जाते हैं तो उसके बाद उस लिक्विड में वापस गैस घुलने में करीब 15 से 30 मिनट लगते हैं इसीलिए एक बार जब उंगलियां चटक जाती हैं तो दोबारा चटकाने पर आवाज़ नहीं आती है चाहे जितनी भी बार कोशिश कर ली जाये जब तक बुलबुले नहीं बनेंगे तब तक आवाज़ नही आएगी।

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