लखनऊ के वरिष्ठ पत्रकार वीरेंद्र नाथ भट के मुताबिक, जब 1989 में वीपी सिंह की सरकार ने मंडल रिपोर्ट लागू की, तब तक भाजपा का उभार शुरू हो चुका था। आपको याद दिला दें कि 1986 में राम मंदिर का ताला खुला था। इसके बाद पूरे देश में मंडल कमीशन, दलित उभार और सांप्रदायिक राजनीति को संभालने में कांग्रेस नाकाम रही। उन्हीं दिनों कई क्षेत्रीय नेता पार्टी छोड़कर चले गए थे। कांग्रेस पार्टी में मजबूत क्षेत्रीय नेताओं के कमी की एक बड़ी वजह इंदिरा गांधी भी थीं।

संजय गांधी के दोस्त चेन्नई में वरिष्ठ कांग्रेस नेता एसवी रमणी ने इंदिरा गांधी को बहुत करीब से काम करते देखा है। एसवी रमणी कहते हैं कि क्षेत्रीय नेताओं से मैडम (इंदिरा गांधी) को थोड़ी समस्या थी। किसी ने मैडम के दिमाग में यह बात डाल दी थी कि अगर क्षेत्रीय नेता शक्तिशाली हो जाएं तो पार्टी कंट्रोल में नहीं रहेगी। इसलिए मैडम ने ऐसे तमाम क्षेत्रीय नेताओं को थोड़ा दबाया, जिससे धीरे-धीरे ही सही पार्टी को भारी नुकसान हुआ।

कांग्रेस के ही कई नेताओं का मानना है कि शुरूआती दौर में पार्टी में युवा नेताओं को नजरअंदाज करना क्षेत्रीय नेताओं की कमी का प्राथमिक कारण रहा है। युवाओं को कांग्रेस में मौका नहीं मिला, इसलिए नई लीडरशिप ठीक से नहीं उभर सकी।

चेन्नई में फ्रंटलाइन पत्रिका के संपादक विजय शंकर का कहना है कि अगर हम तमिलनाडु की बात करें, तो दोनों ही द्रविड़ पार्टियों से भारी संख्या में युवा जुड़े, लेकिन कांग्रेस पार्टी युवाओं को अपनी तरफ आकर्षित करने में नाकाम रही। ठीक इसी तरह की गलती कांग्रेस ने अन्य राज्यों में भी की।

अगर यूपी की बात करें तो वर्षों से कांग्रेस पार्टी में शामिल रहे लखनऊ के राजेश गौतम अब बीजेपी विधायक हैं। राजेश गौतम के मुताबिक, कांग्रेस में संगठन नाम की कोई चीज नहीं थी। कांग्रेस पार्टी कुछ चंद लोगों की जमा पूंजी मात्र रह गई थी। प्रदेश स्तर पर और राष्ट्रीय स्तर पर योजनाओं को संचालित करने का काम कांग्रेस के कुछ चंद नेताओं के जिम्मे था। इसलिए क्षेत्रीय नेता इस पार्टी से दूर होते चले गए।

राजेश गौतम कहते हैं, कि अगर आप काम कर रहे हैं, तो किसी के पीछे भागने की जरूरत नहीं है। जिस पार्टी में योग्यता को महत्व मिलता है, उस पार्टी से युवा ज्यादा जुड़ते हैं। अब कांग्रेस पार्टी को अपनी इस कमी का आभास हो चुका है, इसीलिए अब युवाओं और महिलाओं को लुभाना पार्टी की प्राथमिकता बन चुकी है।

बता दें कि कांग्रेस पार्टी ने शक्ति नाम से एक प्रोजेक्ट लांच किया है। इस प्रोजेक्ट का मकसद युवाओं और महिलाओं को पार्टी से जोड़ना है। इसका दूसरा उद्देश्य बड़े नेताओं और ज़मीनी स्तर के कार्यकर्ताओं के बीच संवाद स्थापित करना है।

मुंबई के नेहरू नगर झोपड़पट्टी में रहने वाले एक कार्यकर्ता का कहना है कि उसने बुरे समय में भी पार्टी के साथ वफादारी निभाई। उसे इस बात की खुशी है कि अब राहुल और प्रियंका गांधी युवाओं और महिलाओं को पार्टी से जोड़ने की मुहिम शुरू कर चुके हैं।

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