भीष्म पितामह को मिला था इच्छा मृत्यु का वरदान, जानिए क्यों?
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महाभारत महाकाव्य के मुताबिक, युद्ध के बाद भीष्म पितामह ने अपनी इच्छा से शरीर त्याग किया था। इस स्टोरी में हम आपको बताने जा रहे हैं कि महाभारत के प्रमुख पात्रों में से एक भीष्म कौन थे? भीष्म को इच्छा मृत्यु का वरदान किस प्रकार मिला था?
भीष्म के बचपन का नाम देवव्रत था। देवव्रत हस्तिनापुर के महाराज शांतनु और देवी गंगा की संतान थे। देवव्रत की माता गंगा देवी अपने पति शांतनु को दिए वचन के मुताबिक वे अपने पुत्र को अपने साथ ले गई थी। देवव्रत की प्रारम्भिक शिक्षा और लालन-पालन माता गंगा ने ही किया। देवव्रत की शिक्षा पूरी करने के बाद देवी गंगा ने उन्हें उनके पिता महाराज शांतनु को सौंप दिया।
इसके बाद महाराज शांतनु ने अपने पुत्र देवव्रत को हस्तिनापुर का युवराज घोषित कर दिया। हस्तिनापुर नरेश महाराज शांतनु को शिकार का बहुत शौक था। महाराज शांतनु एक दिन शिकार खेलते-खेलते गंगा तट के पार चले गए।
गंगा तट पर शांतनु की मुलाकात हरिदास केवट की पुत्री मत्स्यगंधा (सत्यवती) से हुई। शांतनु केवट कन्या सत्यवती पर मोहित हो गए और उन्होंने सत्यवती के समक्ष विवाह का प्रस्ताव रखा। सत्यवती के पिता हरिदास केवट ने कहा कि मैं अपनी पुत्री का विवाह आपसे करने के लिए तैयार हूं, लेकिन इस शर्त के साथ कि मेरी पुत्री का संतान ही हस्तिानपुर का उत्तराधिकारी होगा। इसके बाद राजा शांतनु ने केवट का यह प्रस्ताव अस्वीकार कर दिया। बावजूद इसके वे सत्यवती को भूल नहीं पाते और उसकी याद में दिन-रात व्याकुल रहने लगे।
एक दिन देवव्रत ने अपने पिता शांतनु से उनकी व्याकुलता का कारण पूछा तो उन्होंने सारी बातें बताई। तब देवव्रत स्वंय केवट हरिदास के पास गए और हाथ में गंगाजल लेकर आजीवन अविवाहित रहने की प्रतिज्ञा ली। देवव्रत की इसी कठिन प्रतिज्ञा के कारण उनका नाम भीष्म पड़ा। इसके बाद महाराज शांतनु ने प्रसन्न होकर अपने पुत्र भीष्म को इच्छा मृत्यु का वरदान दिया।