इंटरनेट डेस्क। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अगुवाई में बीजेपी की शक्ति इन दिनों अपने चरमोत्कर्ष पर है। इसका सबसे बेहतरीन उदाहरण है देश के 21 राज्यों में बीजेपी शासित सरकारों की मौजूदगी। लेकिन मोदी के इन राज्यों में आम जनता का शासन के प्रति असंतोष बढ़ता जा रहा है। इसका सबसे बड़ा कारण साल 2014 में किये गए उन तमाम वादों का पूरा नहीं होना। इसलिए साल 2019 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी को सबसे बड़ी चुनौती मिलने वाली है।

विभिन्न राज्यों में हुए हालिया विधानसभा तथा लोकसभा उप चुनावों ने साबित कर दिया है कि देश में पीएम मोदी की लोकप्रियता में कमी आई है। हांलाकि इसमें कोई संदेह नहीं है कि आज की तारीख में नरेंद्र मोदी देश के सबसे बड़े नेता के रूप में मौजूद दिखाई दे रहे हैं। लेकिन जब बात आम चुनाव की आती है तो तब केंद्र सरकार को चुनौती देने के लिए कई क्षेत्रीय दलों के क्षत्रप भी ताल ठोंकते नजर आते हैं।

बतौर उदाहरण यूपी से बसपा और सपा, पश्चिमी बंगाल से तृणमूल कांग्रेस, तेलंगाना से टीआरए तथा बिहार से राजद आदि कई ऐसी क्षेत्रीय पार्टियां हैं, जो आम चुनाव 2019 में मोदी सरकार को कड़ी चुनौती दे सकती है। लोकसभा चुनावों में देश की जनता कभी-कभी स्थानीय मुद्दों को लेकर भी वोट देती है।

भले ही नरेंद्र मोदी की लोकप्रियता का फायदा भुनाने की कोशिश उनके पार्टी के लोग कर सकते हैं, लेकिन आम जनता जब उनके वादों के बारे में पूछेगी तो क्या होगा। इतना ही नहीं बीजेपी शासित राज्यों में उनके मुख्यमंत्री ने कितना काम किया, ऐसे में सत्ता विरोधी लहर को बढ़ावा मिलना लाजिमी है।

मध्य प्रदेश, राजस्थान और मध्यप्रदेश में किसानों का प्रदर्शन इस बात का संकेत हैं कि देश में मोदी सरकार के विरूद्ध किसानों का असंतोष बढ़ चुका है। मतलब है किसानों की नाराजगी का मतलब है आम आदमी की नाराजगी।

सत्ता की ताकत और चकाचौंध में घिरे लोग जमीनी हकीकत भूल जाते हैं। सपनों और असलियत की हकीकत में कितना अंतर होता है, उसका खामियाजा आम चुनावों में भुगतना पड़ता है। इसलिए यही ऐसा समय है जिसमें बीजेपी को संभालना होगा। वरना साल 2004 में अटल बिहारी वाजपेयी सरकार की शाइनिंग इंडिया को कांग्रेस और क्षेत्रीय दलों ने महागठबंधन के जरिए सत्ता से बेदखल कर दिया था। हांलाकि शाइनिंग इंडिया यह दौर नहीं है, लेकिन साल 2019 में नरेंद्र मोदी से उनकी न्यू इंडिया के बारे में जनता सवाल जरूर पूछेगी।

हांलाकि मोदी अपने जादू को बचाने की पूरी कोशिश करेंगे वहीं साल 2004 की तरह कांग्रेस उतनी मजबूत अवस्था में नहीं दिख रही है। लेकिन जनता को कौन कहे कि उसका उंट किस करवट बैठ जाए।

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