इंटरनेट डेस्क। जवाहरलाल नेहरू के समय भी कांग्रेस में कुछ नेताओं के बढ़ते कद को माफ नहीं किया जाता था। यूपी कांग्रेस में एक जमाना वह था जब लोग पंडित नेहरू को प्रणाम करते थे, तब चंद्रभानु गुप्ता के सामने साष्टांग हुआ करते थे।

साल 1962 में राजनीतिक वर्चस्व की लड़ाई में कांग्रेस पार्टी में दो गुट बन गए। एक गुट चंद्रभानु गुप्ता का तो दूसरा गुट कमलापति त्रिपाठी का था। कहा जाता है कि उन दिनों चंद्रभानु गुप्ता चुनाव हार चुके थे, वह नहीं चाहते थे कि कमलापति त्रिपाठी मुख्यमंत्री बनें। इसलिए गुप्ता ने यूपी मुख्यमंत्री पद के लिए सुचेता कृपलानी का नाम सुझाया था।

सुचेता कृपलानी को मुख्यमंत्री पद सौंपने का एक कारण यह भी माना जाता है कि साल 1963 में कांग्रेस पार्टी कामराज प्लान के तहत कुछ पुराने लोगों को पद छोड़ने की बात कही थी, ताकि हर राज्य में पार्टी को मजबूत बनाया जा सके।

इसके अलावा उन दिनों सरकारी कर्मचारियों ने वेतन को लेकर 62 दिनों की एक लंबी हड़ताल की थी। बतौर मुख्यमंत्री सुचेता कृपलानी अपने निर्णय अडिग रहीं और कर्मचारियों के वेतन में कोई बढ़ोतरी नहीं की।

इस प्रकार केंद्रीय कांग्रेस समिति ने सुचेता कृपलानी को मुख्यमंत्री बनाकर एक तीर से कई निशाने साधे थे। कांग्रेस ने सुचेता कृपलानी को केवल यूपी का ही मुख्यमंत्री नहीं बनाया बल्कि पूरे देश को पहली महिला मुख्यमंत्री दिया था।

बंगाली सुचेता ने अपनी पढ़ाई दिल्ली के इंद्रप्रस्थ और सेंट स्टीफेंस से की थी। उन्होंने प्रख्यात समाजवादी नेता जेबी कृपलानी से शादी की थी। साल 1942 में भारत छोड़ो आंदोलन के समय तीन महिलाएं सबसे ज्यादा सुर्खियों में रहीं। इनमें अरुणा आसफ अली और उषा मेहता के साथ सुचेता कृपलानी का नाम भी शामिल है। बता दें कि नेहरू के ट्रिस्ट विद डेस्टिनी स्पीच के दौरान राष्ट्रीय गीत वंदेमातरम भी सुचेता कृपलानी ने ही गाया था।

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