भारत का ये जाबांज जासूस पाकिस्तानी सेना में पहुंच गया था मेजर पद तक, बेहद था बहादुर
जासूसी का मामला रहस्यमयी दुनिया की तरफ ध्यान खींचता है। बता दें कि किसी भी देश की सरकार जासूसों के जरिए बेहद महत्वपूर्ण जानकारियां हासिल करती है, यह अलग बात है कि जरूरत पड़ने पर अक्सर उन्हें नहीं स्वीकारती है। इसी क्रम में हम भारत के एक जांबाज जासूस रवींद्र कौशिक की बात कर रहे हैं, इस जासूस को टाइगर भी कहा जाता है। कौशिक की मौत भी पाकिस्तानी की ही एक जेल में हुई थी।
बता दें कि रवींद्र कौशिक भारत की तरफ से जासूसी करने ना केवल पाकिस्तान गए बल्कि वहां की सेना में मेजर तक का पद हासिल कर लिया। पाक सेना में रहते हुए उन्होंने भारत को कई महत्वपूर्ण जानकारियां दी।
माना जाता है कि बॉलीवुड की सुपरहिट मूवी एक था टाइगर रवींद्र कौशिक की ज़िंदगी से प्रेरित थी। यह भी कहा जाता है कि तत्कालीन गृहमंत्री एसबी चव्हाण रवींद्र कौशिक को ब्लैक टाइगर कहते थे। राजस्थान के श्रीगंगानगर निवासी रविंद्र कौशिक ने 23 वर्ष की उम्र में स्नातक की पढ़ाई पूरी करने के बाद खुफ़िया एजेंसी रॉ में नौकरी कर ली। 1975 में कौशिक को जासूसी करने के लिए पाकिस्तान भेजा गया। नबी अहमद शेख बनकर कौशिक ने कराची के लॉ कॉलेज में दाखिल लिया और कानून में स्नातक की डिग्री हासिल की। पाकिस्तान जाने से पहले उनका खतना भी कराया गया था।
इसके बाद पाकिस्तान की सेना में भर्ती हो गए और मेजर रैंक तक पहुंच गए। बावजूद इसके पाकिस्तानी सेना को यह भनक तक नहीं लगी कि उनके बीच एक भारतीय जासूस काम कर रहा है। कौशिक एक पाकिस्तानी लड़की अमानत से प्यार कर बैठे। इसके बाद दोनों ने शादी कर ली तथा उनकी एक बेटी भी हुई।
बताया जाताा है कि उन दिनों पाक के हर कदम पर भारत भारी पड़ता था, क्योंकि उनकी सभी प्लानिंग की जानकारी कौशिक पहले ही भारतीय अधिकारियों को मुहैया कर देते थे। साल 1983 में रॉ ने एक अन्य जासूस को कौशिक से मिलने के लिए पाकिस्तान भेजा था, जिसे पाकिस्तानी खुफ़िया एजेंसी ने पकड़ लिया। इस तरह से रविंद्र कौशिक का राज खुल गया।
पूछताछ के दौरान इस जासूस ने ना केवल अपने इरादे बता दिए बल्कि कौशिक की पहचान भी उजागर कर दी। कौशिक वहां से भाग निकले तथा भारत से मदद मांगी लेकिन कहते हैं उन्हें भारत लाने में कोई दिलचस्पी नहीं दिखाई गई। आखिरकार कौशिश को पकड़कर सियालकोट की जेल में डाल दिया।
कौशिक को घोर यातनाएं दी गईं। कौशिक को यह भी लालच दिया गया कि अगर वह भारतीय सरकार से जुड़ी गोपनीय जानकारी दे दें, उन्हें छोड़ दिया जाएगा। जब रविंद्र ने अपना मुंह नहीं खोला तो उन्हें उम्रकैद की सजा दी गई। मियांवली जेल में रविंद्र कौशिक की मौत साल 2001 में टीबी और दिल का दौरा पड़ने से हो गई।