1975 में जब गायत्री देवी मुंबई इलाज करवाने गई थीं, तब उन्हें बताया गया कि इलाज होते ही उन्हें गिरफ्तार किया जा सकता था, इमरजेंसी का समय था और इंदिरा गांधी ने गायत्री देवी के खिलाफ इरादा कर लिया था,गायत्री देवी ने इस अंदेशे से घबराए बगैर दिल्ली का रुख किया और लोकसभा पहुंचीं। लेकिन, वहां उन्होंने जो नज़ारा देखा, उसे देखकर वह अवाक रह गईं। विपक्ष की बेंचें खाली पड़ी हुई थीं।

गायत्री देवी औरंगज़ेब रोड स्थित अपने घर पहुंचीं और कुछ ही देर में आयकर विभाग के अफसर वहां पहुंचे,अफसरों ने उनसे कहा कि उन पर आरोप है कि उन्होंने अघोषित सोना और संपत्ति छुपा रखी है और इसी सिलसिले में विदेशी एक्सचेंज व तस्करी से जुड़े एक एक्ट के तहत उन्हें गिरफ्तार किया जा रहा है। गायत्री देवी को तिहाड़ जेल भेज दिया गया।

1980 में संजय गांधी की प्लेन दुर्घटना में मौत हुई. संजय के निधन पर शोक जताने के लिए गायत्री देवी ने इंदिरा गांधी को फोन भी किया था लेकिन इंदिरा ने बात करने से मना कर दिया था. यानी मनमुटाव सामान्य नहीं था, रंजिश थी,इस कदर रंजिश के पीछे भी कोई न कोई कहानी ज़रूर रही होगी।

कहानी ये है कि गायत्री देवी और इंदिरा गांधी दोनों ही रबींद्रनाथ टैगोर द्वरारा स्थापित शांतिनिकेतन के स्कूल पाठ भवन में साथ पढ़ चुकी थीं और तबसे एक दूसरे से परिचय था, इनके बारे में खुशवंत सिंह ने लिखा था कि उसके अनुसार इंदिरा गांधी आत्ममुग्ध थीं और अपने से ज़्यादा सुंदर या दर्शनीय महिला को अपने आसपास बर्दाश्त नहीं कर सकती थीं।

खुशवंत सिंह ने एक जगह ये ज़िक्र भी किया है कि संसद में जब गायत्री देवी पहुंची थीं, तब उन्हें देखकर इंदिरा गांधी बेहद असहज ही नहीं बल्कि चिढ़ महसूस कर रही थीं, अब यहां सवाल खड़ा होता है कि अगर सच में ये कोई बदले की भावना थी तो इसी बात का इंदिरा बदला लेना चाहती थी।

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