भारत के गृहमंत्री अमित शाह ने पुलिस को सलाह दी है कि थर्ड डिग्री टॉर्चर को अब बंद कर देना चाहिए क्योकिं यह पुराना हो चूका है। अब अगर गुनहगारों को पकड़ना है तो बेहतर इन्वेस्टिगेशन और फॉरेंसिक एविडेंस का इस्तेमाल करिए।

ब्यूरो ऑफ पुलिस रीसर्च एंड डेवलपमेंट के 50 वें फाउंडेशन पर अमित शाह ने कहा कि पुराने पुलिसिया तरीकों को सुधारना चाहिए, और फोन टैपिंग वगैरह पर निर्भर रहने से कुछ नहीं होगा।

लेकिन असल में थर्ड डिग्री टॉर्चर क्या होता है? इस बारे में लोग अपनी अलग अलग राय रखते हैं। लोगों के अनुसार किसी को बहुत अधिक मारना पीटना, भूखा रखना, आँखों में मिर्ची डालना आदि होता है। लेकिन क्या वाकई में थर्ड डिग्री टॉर्चर यही है? आइए जानते हैं।

क्या होता है थर्ड डिग्री टॉर्चर

इसकी कोई गाइडलाइन नहीं है। टॉर्चर का मतलब प्रताड़ित करना होता है। पुलिस जब सच उगलवाना शुरू करती है तो आराम से पूछती है लेकिन फिर भी सच बाहर नहीं आ पाता है तो पुलिस हल्के बल से लेकर थर्ड डिग्री टॉर्चर तक को काम में लेती है।

अलग अलग केसों में थर्ड डिग्री टॉर्चर के बारे में अलग अलग सुनने को मिलता है। इसमें अपराधी को पूरा नंगा करने से लेकर उन्हें मल मूत्र करने से रोकना, खाना ना देना आदि शामिल है।

रिपोर्ट्स के अनुसार कुछ महिलाओं को कलकत्ता के लाल बाज़ार पुलिस स्टेशन ले जाया गया। इनके कपड़े उतार दिए गए, शरीर के कई हिस्सों पर उन्हें जलाया गया।

कुछ केसेज़ में वजाइना और मलद्वार में लोहे की स्केल डाली गई। यहाँ तक कि कुछ महिलाओं का अन्य क्रिमिनल्स द्वारा रेप करवाया गया। एक पुरुष का एक हाथ एक खिड़की से बाँध दिया गया जिस से वह ना तो बैठ पाया और ना ही सो पाया।

थर्ड डिग्री को अमित शाह ने पुराना तरीका कह दिया है लेकिन पुलिस इसका इस्तेमाल अभी भी करती है। कई खबरें अभी भी ऐसी आती हैं जहां अभियुक्त पुलिस द्वारा ज्यादती की शिकायत करते हैं। इसको लेकर एमनेस्टी इंटरनेशनल ने भी कई कैम्पेन चलाए हैं और इसे पूरी तरह से खत्म करने की बात भी कही गई है।

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