साल 1970 के शुरुआती दिनों की बात है। प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी सफलता के चरम पर थीं। उनकी शख्सियत ने देश को एक नया मोड़ दिया लेकिन एक बात ऐसी है जो आज भी रहस्य है , भारत उस समय उन्होंने लाल किले के परिसर में टाइम कैप्सूल दफन करवाया था। इस बारे में Netaji: Rediscovered नाम की किताब में डिटेल से बताया गया है। इस किताब को कनाईलाल बासु ने लिखा है।

सरकार चाहती थी कि आजादी के 25 साल बाद की स्थिति को संजोकर रखा जाए। इसके लिए टाइम कैप्सूल बनाने का आइडिया दिया गया। आजादी के बाद 25 सालों में देश की उपलब्धि और संघर्ष के बारे में उसमें उल्लेख किया जाना था। इंदिरा गांधी की सरकार ने उस टाइम कैप्सूल का नाम कालपात्र रखा था।


1977 में कांग्रेस सत्ता से बेदखल हो गई और मोरारजी देसाई के नेतृत्व में जनता पार्टी की सरकार बनी। जनता पार्टी ने चुनाव से पहले लोगों से वादा किया था कि पार्टी कालपात्र को खोदकर निकालेगी और देखेगी कि इसमें क्या है। सरकार गठन के कुछ दिनों बाद टाइम कैप्सूल को निकाला गया लेकिन जनता पार्टी की सरकार ने इस बात का खुलासा नहीं किया कि उस टाइम कैप्सूल में क्या था। यह मामला 2012 में फिर से चर्चा में आया। मानुशी पत्रिका की संपादक मधु किश्वर ने पीएमओ से इसके बारे में जानकारी मांगी थी। पीएमओ ने अपने जवाब में कहा था कि उसके पास कोई जानकारी नहीं है।

टाइम कैप्सूल एक कंटेनर की तरह होता है जिसे विशिष्ट सामग्री से बनाया जाता है। टाइम कैप्सूल हर तरह के मौसम का सामना करने में सक्षम होता है, उसे जमीन के अंदर काफी गहराई में दफनाया जाता है। काफी गहराई में होने के बावजूद भी हजारों साल तक न तो उसको कोई नुकसान पहुंचता है टाइम कैप्सूल को दफनाने का मकसद किसी समाज, काल या देश के इतिहास को सुरक्षित रखना होता है।

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