भारत का एक ऐसा युद्ध क्षेत्र जहां का तापमान 50 डिग्री सेल्सियस तक नीचे पहुंच जाता है। इस युद्ध क्षेत्र तक पहुंचने में भारतीय सैनिकों को 20 से 22 दिन का समय लग जाता है। चौकियों पर जाने वाले सैनिक एक के पीछे एक लाइन में चलते हैं और एक ही रस्सी सबकी क़मर में बंधी होती है। बर्फ़ में धंसने अथवा खाई में गिरने पर क़मर में बंधी रस्सी के सहारे ही एक सैनिक दूसरे सैनिक की जान बचा सकता है।

जी हां, हम आप से दुनिया के सबसे ऊंचे रणक्षेत्र सियाचिन की बात कर रहे हैं। सियाचिन में हजारों फुट की ऊंचाई पर गहरी खाइयों के सिवाय न ही पेड़-पौधे हैं, न जानवर और न ही पक्षी नजर आते हैं। ऑक्सीजन की कमी की वजह से कभी-कभी सैनिकों की सोते समय ही जान चली जाती है। इस इलाके में सैनिकों की तैनाती केवल तीन महीने के लिए की जाती है। इस दौरान सैनिक बहुत ही सीमित दायरे में घूम फिर सकते हैं। संघर्ष विराम के चलते यहां सैनिकों को बस समय गुजारना होता है, लेकिन यहां वह भी मुश्किल काम है।

सियाचिन पर बनी चौकियों के लिए भारतीय वायुसेना जीवन रेखा का काम करती है। इन सैन्य चौकियों पर जो हेलिकॉप्टर उतरता है, उसे चीता हेलिकॉप्टर कहते हैं। सेना के मुताबिक, इस युद्ध क्षेत्र में केवल चीता हेलिकॉप्टर ही काम कर सकता है। सबसे ऊंचाई तक जाने और सबसे ऊंचाई पर बने हेलिपैड पर लैंड करने वाले हेलिकॉप्टर का रिकॉर्ड इसी के नाम है।

संघर्ष विराम से पहले सियाचिन में बनी सैन्य चौकियों तक हेलिकॉप्टर ले जाने में काफ़ी सावधानी बरतनी पड़ती थी। बता दें कि इन सैन्य चौकियों पर चीता हेलिकॉप्टर महज 30 सेकेंड के लिए ही रूकता है। संघर्ष विराम से पहले ऐसा इसलिए किया जाता था, क्योंकि जब तब विरोधी निशाना साधेगा तब तक हेलिकॉप्टर उड़ जाएगा। मगर आज भी वही प्रक्रिया अपनाई जाती है, जिससे कि सेना किसी भी स्थिति के लिए तैयार रहे।

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