वरुण गांधी से भाजपा हाईकमान आखिर चाहता क्या है !
दोस्तों, याद कीजिए साल 2009 में 9 मार्च की वह तारीख जब यूपी में पीलीभीत जिले बरखेरा गांव में 29 साल के वरुण गांधी ने एक रैली को संबोधित करते हुए विवादास्पद बयान देकर सियासी गलियारे में तहलका मचा दिया था। एक बारगी ऐसा लगा कि वरुण गांधी के रूप में भारतीय जनता पार्टी को एक नया चेहरा मिल गया है।
बता दें कि आज की तारीख में वही वरुण गांधी बीजेपी में हाशिए पर चले गए हैं। यह बात उन दिनों की है जब राजनाथ सिंह भाजपा अध्यक्ष थे, तब वरुण गांधी को पार्टी महासचिव बनाया गया था। इतना ही नहीं उन्हें पश्चिम बंगाल में पार्टी प्रभारी भी बनाया गया था।
लेकिन वर्तमान में वरुण गांधी की हैसियत भाजपा में गुमनाम सी हो चुकी है। भाजपा हाईकमान ने उन्हें यहां तक निर्देश दे रखा है कि वह अपने संसदीय क्षेत्र से बाहर किसी भी राजनीतिक कार्यक्रम में बिना अनुमति के शिरकत नहीं करेंगे।
जी हां, दोस्तों वरुण गांधी को पार्टी से दरकिनार करने की यह कहानी शुरू होती है लोकसभा चुनाव 2014 से, जब भाजपा में नरेंद्र मोदी को पीएम प्रत्याशी बनाए जाने को लेकर उठापटक जारी थी। उन दिनों वरुण गांधी ने राजनाथ सिंह की तुलना अटल बिहारी वाजपेयी से करते हुए पीएम उम्मीदवार बनाने की वक़ालत की थी।
इतना ही नहीं साल 2013 में बरेली की एक जनसभा में वरुण गांधी ने कहा था कि वाजपेयी का शासन काल देश के हर बच्चे को याद है। मैं यह बात पूरे दावे के साथ कह सकता हूं कि अगर आज की तारीख में देश में कोई व्यक्ति जाति, मजहब की दीवार तोड़कर लोगों को साथ में ला सकता है तो वह आदरणीय राजनाथ सिंह हैं। फिर क्या था भाजपा की कमान जैसे ही अमित शाह के हाथ में आई वरुण गांधी को ना केवल पार्टी महासचिव पद से हटा दिया गया बल्कि बंगाल की भी जिम्मेदारी छीन गई।
अब सवाल यह उठता है कि क्या भाजपा में वरुण गांधी का भविष्य बचा भी है अथवा नहीं। क्या नेहरू-गांधी ख़ानदान के वरुण महज एक सांसद होने पर संतोष कर लेंगे?
इस बारे में राजनीतिक विश्लेषक अभय कुमार दुबे कहते हैं कि वरुण गांधी संघ की पृष्ठभूमि से नहीं हैं। मोदी और शाह की जोड़ी बीजेपी यूपी में किसी भी मज़बूत नेतृत्व को विकसित नहीं करना चाहती है। भाजपा हाईकमान यह कत्तई नहीं चाहती है कि रमन सिंह और शिवराज सिंह चौहान की तरह यूपी में भी किसी मज़बूत नेता का उत्कर्ष हो।
अभय कुमार दुबे के मुताबिक, पीएम मोदी और अमित शाह को वरुण के ज़्यादा लोकप्रिय होने का डर है। इसलिए आज की तारीख में भाजपा में वरुण का भविष्य नहीं दिखता। वरिष्ठ पत्रकार सिद्धार्थ वरदराजन भी कुछ ऐसा ही कहते हैं, कांग्रेस मुक्त भारत की सोच रखने वाली भाजपा में वरुण का भविष्य बहुत धुंधला नजर आ रहा है।