आपको याद दिला दें कि दुनिया के सबसे ऊंचे और ठंडे माने जाने वाले रणक्षेत्र सियाचिन पर भारतीय सेना के जवान हर पल मौजूद रहते हैं। बता दें कि 13 अप्रैल 1984 को कुमाऊं रेजिमेंट की पलटन ने कैप्टन संजय कुलकर्णी की अगुवाई में सियाचिन की सबसे ऊंची चोटी पर तिरंगा लहराया था।

आज की तारीख में भारतीय फौजों की किलेबंदी सियाचिन में इतनी मजबूत है कि पाकिस्तान चाह कर भी इसमें सेंध नहीं लगा सकता। अप्रैल 1984 में सियाचिन पर कब्जा करने के लिए ​ऑपरेशन मेघदूत को अंजाम दिया था। भारतीय सेना के इस अहम ऑपरेशन को शौर्य और पराक्रम के मिसाल के तौर पर देखा जाता है।

बता दें कि 80 के दशक में पाकिस्तान ने सियाचिन पर कब्जा करने की तैयारी शुरू कर दी थी। इस बात की भनक लगते ही साल 1982 में भारत ने अपने जवानों को अंटार्कटिका भेजा, ताकि सियाचिन पर कब्जा करने में सेना के जवानों को कोई दिक्कत नहीं हो।

बता दें कि सियाचिन पर कब्जा करने के बाबत पाकिस्तान ने साल 1984 में लंदन की एक कंपनी को बर्फ में काम आने वाले साजो-सामान की सप्लाई करने का ठेका भी दिया था। पाकिस्तान 17 अप्रैल, 1984 से सियाचिन पर कब्जा जमाने के लिए ऑपरेशन शुरू करने वाला था, इससे ठीक तीन दिन पहले भारत ने सियाचिन पर तिरंगा लहराकर पाक को हैरत में डाल दिया था।

ऑपरेशन मेघदूत के दौरान वायुसेना के चेतक ओर चीता हेलीकॉप्टरों के जरिए सैनिकों को ग्लेशियर की उन चोटियों तक पहुंचाया गया था। जब पाकिस्तान की फौज सियाचिन के इलाके में पहुंची तो पता चला कि वहां करीब 300 भारतीय सैनिक पहले से ही कब्जा जमाए बैठे हैं। तब से लेकर आज तक मुश्किल हालातों का सामना करने के बावजूद भी भारतीय सेना सियाचिन पर डटी हुई है।

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