दोस्तों, आपको बता दें कि जम्मू-कश्मीर को लेकर ना केवल पाकिस्तान बल्कि कभी ताकतवर देश अमेरिका ने भी अपनी नजरें जमा रखी थी, दरअसल उसकी मंशा कश्मीर में अमेरिकी और ब्रिटीश आर्मी की तैनाती कर सैन्य अड्डा बनाने की थी। लेकिन वह अपनी मंशा में कामयाब नहीं हो सका। कश्मीर को अपने अधिकार में लेकर सैन्य अड्डा बनाने के लिए अमेरिका ने हर चाल चली लेकिन उसे कामयाबी नसीब नहीं हो सकी।

भारतीय कश्मीर पर अधिकार करने के लिए अमेरिकी के तत्कालीन राजदूत हैंडरसन ने उस वक्त मुख्यमंत्री शेख अब्दुला के साथ दो गुप्त बैठकें भी की थी। यह गुप्त बैठक श्रीनगर में हुई थी। बताया जाता है कि इस गुप्त बैठक की रूपरेखा दिल्ली में हुई एक मुलाकात के बाद तय हुई थी।

इस मुलाकात में अमेरिकी राजदूत हैंडरसन ने शेख अब्दुला के सामने कश्मीर की आजादी का विकल्प खुला रखा। हैंडरसन ने 29 सितंबर 1950 को अमेरिकी विदेश मंत्री से इस बात का ब्यौरा भी पेश किया था। इसके बाद से शेख अब्दुला ने कश्मीर को लेकर बयान बदलने शुरू कर दिए थे। बताया जाता है कि शेख अब्दुला अब कश्मीर को भारत से अलग करने के लिए राजी हो चुके थे। लेकिन इस शर्त के साथ राजी हुए थे कि अमेरिका और ब्रिटेन के साथ संयुक्त राष्ट्र संघ भी कश्मीर को एक अलग देश के रूप में मान्यता दे।

गौरतलब है कि द्वितीय विश्वयुद्ध के बाद से साम्यवादी रूस और चीन पर अंकुश लगाने के लिए अमेरिका कश्मीर को अपना केंद्र बनाना चाहता था। चूंकि कश्मीर की भौगोलिक स्थिति ऐसी है, जहां से इन दोनों पर आसानी से लगाम लगाई जा सकती है। लेकिन अमेरिका और ब्रिटेन के सामने सबसे बड़ा प्रश्न यह था कि 1947 में आजाद हुए भारत और पाकिस्तान में से कौन सा देश उनके लिए फायदेमंद साबित होगा।

भारत की आजादी के बाद से दक्षिण एशिया में उपजे आर्थिक व भू राजनीतिक हितों को लेकर मित्र देश सहित ब्रिटेन भी चिंता में था। इसलिए अमेरिका के लिए पाकिस्तान के अलावा कोई दूसरा देश नजर नहीं आया। ब्रिटेन की शह पर अमेरिका ने साम्यवादी रूस की घेराबंदी करने के लिए पाकिस्तान को कश्मीर पर आक्रमण करने के लिए उकसाया। लेकिन उसकी मंशा कभी भी सफल नहीं हो सकी और ना ही कभी हो पाएगी।

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