दुःख भरा रहा था ये पल जब गांधीजी को सूट-बूट छोड़ धोती और शॉल के साथ बितानी पड़ी जिंदगी
मोहनदास करमचंद गांधी ने 1888 में क़ानून के एक छात्र के रूप में इंग्लैंड में सूट पहने नज़र आ रहे है। इसके 33 साल बाद 1921 में भारत के मदुरई में जब सिर्फ़ धोती में वो दिखें तो इस घटना के पीछे दिलचस्प बात हुई थी जो बहुत कम लोगों को पता होगा। यह बात तब की है जब बिहार के चंपारण ज़िले की जहां पहली बार भारत में उन्होंने सत्याग्रह का सफल प्रयोग किया था।
गांधी जी चंपारण के मोतिहारी स्टेशन पर 15 अप्रैल 1917 को तीन बजे दोपहर में उतरे थे। वो वहां के किसानों से मिले। वहां के किसानों को अंग्रेज़ हुक्मरान नील की खेती के लिए मजबूर करते थे। हज़ारों भूखे, बीमार और कमज़ोर हो चुके किसान गांधी को अपना दुख-दर्द सुनाने के लिए इकट्ठा हुए थे। महिलाओं ने गांधी जी को बताया कि अंग्रेजों के लिए दिन-रात यौन दासी के रूप में उपलब्ध रहना पड़ता है।
5 बार नॉमिनेट होने के बाद भी महात्मा गांधी को क्यों नहीं मिला शांति नोबेल पुरस्कार, जानिए सच्चाई
किसानों के सत्याग्रह के दौरान गांधी जी ने खादी को लेकर प्रतिज्ञा ली, महिलाओं को खेती और बुनाई का काम भी उन्हें सिखाया गया,लोगों को कुंओ और नालियों को साफ-सुथरा रखने के लिए प्रशिक्षित किया गया। विदेशी कपड़ों को त्याग कर खुद के बनाए गए खादी पहनने का आग्रह किया। उसके बाद से गांधी जी ने भी विदेशी कपड़ो का त्याग किया।
महात्मा गांधी को क्यों था अपनी पत्नी कस्तूरबा से संबंध बनाने का जीवनभर अफसोस, जानें