दोस्तों, आपको जानकारी के लिए बता दें कि मार्च के महीने में राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद अपनी पत्नी के साथ जगन्नाथ मंदिर गए थे। उन दिनों सोशल मीडिया पर एक खबर जोरों से प्रसारित की गई थी कि मंदिरों के पंडो ने राष्ट्रपति और उनकी पत्नी के साथ धक्का-मुक्की की। जबकि सच्चाई यह है कि बस दो पंडों से बॉडी टू बॉडी टच हुआ था, मतलब उनका शरीर छू गया था।

सोशल मीडिया लगातार यह खबरें प्रसारित करता रहा कि राष्ट्रपति के साथ दलित होने के चलते मंदिर में धक्का-मुक्की हुई। जबकि हाल में ही इस मामले में पुरी के डीएम अरविंद अग्रवाल पर मंदिर प्रशासन को गुमराह करने, उन्हें बदनाम करने का आरोप लगा है। इतना ही नहीं पुरी मंदिर के पंडों ने डीएम अग्रवाल के विरूद्ध पुलिस में भी शिकायत दर्ज कराई है। मंदिर के मौजूदा चीफ अडमिनिस्ट्रेटर प्रदीप्त कुमार महापात्रा के अनुसार, राष्ट्रपति भवन की ओर से हमें कोई भी शिकायती पत्र नहीं भेजा गया है।

इस प्रकार हम आपको इस स्टोरी में यह बताने की कोशिश कर रहे कि सोशल मीडिया में प्रसारित इस गलत खबर से देश की दलित जनता में आखिर कैसा संदेश गया। दोस्तों, आपको बता दें कि जगन्नाथ मंदिर और पंडों की छवि से पहले दलितों की संवैधानिक स्थिति का सवाल है।

सोशल मीडिया और मीडिया की बदौलत यह स्टोरी लोगों के बीच जमकर उछाली गई। ऐसे में जनता के बीच यह संदेश गया कि जब भारत के राष्ट्रपति तक के साथ भी दलित होने की वजह से दुर्व्यवहार होता है, फिर आम दलितों की क्या बिसात?

यह बात सभी को पता है कि देश में अभी तक दलितों के साथ भेदभाव खत्म नहीं हुआ है, और ना ही उनका शोषण होना बंद हुआ है। लेकिन राष्ट्रपति कोविंद को लेकर जो खबर सोशल मीडिया पर प्रसारित की गई, इसमें कुछ भी ठीक नहीं हुआ। भारत के जिस भी व्यक्ति को इस खबर की अपडेट नहीं पता है, उसे यही लगेगा कि राष्ट्रपति के साथ सचमुच धक्का-मुक्की हुई। लेकिन यदि डीएम ने राष्ट्रपति भवन से शिकायती चिट्ठी आने की मनगढ़ंत बात गढ़ी है तो यह बहुत ही गंभीर आरोप है। इसकी जांच होनी चाहिए तथा डीएम के विरूद्ध कड़ी कार्रवाई की जानी चाहिए।

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