आपको याद होगा, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को चुनौती देने के लिए सोनिया गांधी ने 13 मार्च 2018, मंगलवार की रात दिल्ली के 10 जनपथ पर 20 राजनीतिक पार्टियों के नेताओं को रात के खाने का न्योता दिया था। उस समय भाजपा को एकबारगी जरूर झटका लगा होगा। यह बात सभी सियासी पंडित अच्छी तरह से समझ चुके थे, यह न्यौता भले ही खाने का था लेकिन असली मंशा नरेंद्र मोदी के खिलाफ एकजुट होने की थी। देखा जाए तो सोनिया गांधी ने मोदी के खिलाफ महागठबंधन की शुरूआत की थी। इस भोज निमंत्रण में माकपा, भाकपा, तृणमूल कांग्रेस, बसपा, सपा, जेडीएस, राजद समेत 20 सियासी दलों के नेता पहुंचे थे। लेकिन महागठबंधन को पहले ही दिन से झटका लगना शुरू हो गया, जब उस न्यौते में ममता बनर्जी, अखिलेश यादव और मायावती जैसे बड़े नेता नहीें पहुंचे।

बावजूद इसके एक उम्मीद थी कि लोकसभा चुनाव 2019 नजदीक आते ही सभी सियासी पार्टियां एक साथ मिलकर चुनाव लड़ें। उस वक्त एक साथ खड़े सभी नेताओं की खींची गई तस्वीर सोशल मीडिया पर छा गई थी। अब लोकसभा चुनाव नजदीक है और महागठबंधन की एकजुटता बिखरी हुई सी साफ दिख रही है। सपा-बसपा, ममता बनर्जी और राहुल गांधी इन सभी का एटिट्यूड ही महागठबंधन के आड़े आया है। ध्यान देने वाली बात है कि सपा-बसपा ने ये मान लिया है कि यूपी में उन्हें जीतने से कोई नहीं रोक सकता, इसलिए अपने गठबंधन में कांग्रेस को शामिल नहीं किया। जबकि आरएलडी को शामिल कर लिया। लेकिन यह बात समझना जरूरी था कि यूपी में भाजपा के खिलाफ सभी वोट एक जगह पड़ने चाहिए, ना कि आपस में ही कटने चाहिए।
इस चुनाव में बीजेपी के खिलाफ पड़ने वाले वोट कांग्रेस और सपा-बसपा-आरएलडी के गठबंधन में बंटेंगे, जिसका सीधा फायदा मोदी सरकार को होगा। पश्चिमी बंगाल में ममता बनर्जी ने यह साफ कर दिया है कि वह कांग्रेस के साथ नहीं आएंगी। लिहाजा पश्चिम बंगाल में भाजपा ने अपनी जमीन बनानी शुरू कर दी है। आम आदमी पार्टी की तरफ राहुल गांधी को दिल्ली ही नहीं हरियाणा में भी गठबंधन करने प्रस्ताव मिला, लेकिन कांग्रेस नहीं मानी। ऐसा माना जा रहा है कि राजस्थान, मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ में चुनाव जीतकर राहुल गांधी अतिआत्मविश्वास में नजर आने लगे हैं।

जहां राहुल गांधी को विपक्षी एकजुटता की कमान संभालनी चाहिए थी, वो खुद ही केरल के वायनाड सीट से चुनाव लड़ने पहुंच गए, जहां वो अपने पुरानी सहयोगी लेफ्ट के खिलाफ खड़े हो गए। ऐसे में स्पष्ट रूप से यह कहा जा सकता है, जिस महागठबंधन की शुरूआत सोनिया गांधी ने की थी, उसे आगे बढ़ाने में राहुल गांधी फेल साबित हुए।
यह सभी जानते हैं कि साल 2014 में मोदी लहर विपक्ष को बहाकर ले गई थी। पिछले 5 सालों में जनता का विश्वास मोदी सरकार से थोड़ा कम हुआ है, इसी बीच विपक्षी ताकतों ने आपस में लड़कर मोदी सरकार का काम आसान कर दिया है।
इसमें कोई दो राय नहीं है कि कमजोर विरोधी नरेंद्र मोदी की असली ताकत है। सर्वे में भाजपा को 279 सीटें तथा यूपीए को 149 सीटें व अन्य दलों को 115 सीटें मिलने का अनुमान सामने आया है। इन आंकड़ों से स्पष्ट था कि चुनाव से पहले महागठबंधन सफल हो जाता तो मोदी सरकार को कड़ी टक्कर मिल सकती थी। लेकिन अफसोस कि जीत का सेहरा बीजेपी के हिस्से में जाने वाला है। 21 मई को आने वाले चुनाव परिणाम के दौरान मोदी-मोदी के नारे लगता तय मानकर चलिए। क्योंकि मोदी सरकार को हटाने का सिर्फ एक ही रास्ता था- महागठबंधन, जो अब नहीं रहा।

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