लोकसभा चुनाव 2019 के लिए चुनाव आयोग ने देश में आदर्श आचार संहिता लागू कर दी है। देशभर की तमाम पार्टियां जैसे भाजपा, कांग्रेस, सपा, बसपा, कम्‍यूनिस्‍ट पार्टी, शिवसेना, तृणमूल कांग्रेस, राजद आदि चुनावी दंगल जीतने के लिए कमर कस चुकी हैं। बता दें कि लोकसभा चुनाव 2019 वास्तव में बेहद दिलचस्प होने वाला है। इसमें कोई दो राय नहीं कि किसान, राफेल, राम मंदिर और पुलवामा आतंकी हमला लोकसभा चुनाव 2019 के अहम मुद्दे बनेंगे। आपको बता दें कि आजादी से लेकर सभी आम चुनावों की तरह इस बार भी यूपी ही केंद्र की सत्ता की राह खोलेगा।

लोकसभा चुनाव 2014 कांग्रेस बनाम भाजपा था। लेकिन मोदी लहर के आगे कांग्रेस ताश के पत्तों की तरह बिखर गई। साल 2014 में भाजपा सभी दलों पर भारी पड़ी। मोदी लहर में एक से बढ़कर एक दिग्गज नेता धराशायी हो गए। इन नेताओं में सलमान खुर्शीद, कपिल सिब्‍बल, गुलाम नबी आजाद, सचिन पायलट, गिरिजा व्‍यास, अजीत सिंह, श्रीप्रकाश जायसवाल, सुशील कुमार शिंदे, प्रफुल्ल पटेल और चंद्रेश कुमारी का नाम भी शामि है। इनमें से कई नाम ऐसे हैं, जो मनमोहन सरकार में कैबिनेट मिनिस्टर थे।

लोकसभा चुनाव 2014 में भाजपा ने 282 सीटों पर विजयश्री हासिल की, जबकि कांग्रेस को इस चुनाव में महज 44 सीटें मिलीं। वजह साफ थी, साल 2014 में कांग्रेस यूपी में अपनी राजनीतिक जमीन और विरासत को लगभग खो बैठी थी। अब लोकसभा चुनाव 2019 भी उत्तर प्रदेश में कांग्रेस के लिए अपनी राजनीतिक जमीन बचाने की लड़ाई है। साल 2014 में भाजपा ने यूपी की कुल 80 सीटों में से 71 सीटों पर विजय हासिल की थी।

केंद्रीय सत्ता की चाबी है उत्तर प्रदेश


हर आम चुनाव में यूपी अपनी अहम भूमिका निभाता रहा है। देश के सभी राज्यों से अधिक 80 लोकसभा सीटें यूपी के पास है। देश की दो बड़ी पार्टियों भाजपा और कांग्रेस का सबसे ज्यादा जोर इसी राज्य पर होता है।
पिछले आम चुनाव में यूपी की 80 सीटों में से 71 सीटें भाजप के खाते में गई थीं। बसपा का खाता भी नहीं खुल पाया था। सपा को पांच और कांग्रेस को सिर्फ दो सीटें मिली थीं।
लोकसभा चुनाव 2019 में भी भाजपा यूपी में साल 2014 की तरह सीटें पाने की कवायद में जुटी है। हांलाकि सपा-बसपा गठबंधन से 2014 के आंकड़ों में कुछ बदलाव जरूर दिखने वाला है। लिहाजा यह कहना बिल्कुल गलत नहीं होगा कि हर बार की तरह इस बार भी केंद्र में सरकार बनाने के लिए यूपी के रास्ते से गुजरना ही होगा।

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