सिनेमाघर में मारपीट के चलते पुलिस की नौकरी गंवाकर एक युवक खेतीबारी करने गांव चला आया। जब बड़े भाई को चुनाव लड़ने का प्रस्ताव मिला तो उसने छोटे भाई को टिकट दिलवा दिया। पत्नी से 10 रूपए का नोट ले​कर घर से निकला वह युवक चुनाव जीतकर ही वापस लौटा। 1977 में जनता पार्टी की सरकार बनी और वह युवा नेता राजस्थान का मुख्यमंत्री बन गया। जी हां, मैं आपसे भैरो सिंह शेखावत की बात कर रहा हूं, प्रदेश के लोग आज भी बाबोसा ही कहते हैं।

केंद्र में जनता पार्टी की सरकार बन चुकी थी, पीएम मोरार जी देसाई बने थे। कांग्रेस की राज्य सरकारें भी शासन का नैतिक अधिकार खो चुकी हैं, इस वजह से कुल 9 राज्यों में मध्यावधि चुनाव हुए और राजस्थान सहित अधिकांश राज्यों में जनता पार्टी की सरकार बनी। राजस्थान की कुल 200 सीटों में जनता पार्टी के विधायक थे 152। मास्टर आदित्येंद्र और राज्यसभा सांसद भैरो सिंह शेखावत में सीएम पद को लेकर वोटिंग हुई। 110 वोट बोबास के पक्ष में गए, जबकि मास्टर को मिले सिर्फ 42 वोट।

शहर में मौजूद मधु लिमये इस नतीजे से मुस्कुराने लगे थे। प्रधानमंत्री, गृह मंत्री सहित जनता पार्टी के अध्यक्ष चंद्रशेखर जयपुर पर नजरें गड़ाए हुए थे। जीत की ऐलान के बाद भैरो सिंह शेखावत ने मास्टर के पैर छू लिए। और सरकार में उन्हें वित्त मंत्री बना दिया। यह केवल नाम का धप्पा था। क्योंकि चुनाव के दौरान ही जनता पार्टी और जनसंघ धड़े के बीच गुप्त समझौता हो गया था। इसके मुताबिक, चुनाव जीतने के बाद जनसंघ को यूपी, बिहार, हरियाणा में जनता पार्टी के धड़े का मुख्यमंत्री उम्मीदवार चुनेगा।

अत: यूपी में रामनरेश यादव, बिहार में कर्पूरी ठाकुर, हरियाणा में चौधरी देवीलाल सीएम बने। वहीं जनता दल धड़े को राजस्थान, मध्यप्रदेश और हिमाचल में जनसंघ के मुख्यमंत्री को समर्थन करना था, लिहाजा हिमाचल में शांता कुमार, मध्य प्रदेश में कैलाश जोशी और राजस्थान में भैरो सिंह शेखावत मुख्यमंत्री बने थे।

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