लेफ्टिनेंट रामा राघोबा राणे की वो बहादुरी, जिसके बाद उन्हें परमवीर चक्र मिला
इंटरनेट डेस्क। 26 जून 1918 को कर्नाटक के धारवाड़ स्थित हवेली गांव में रामा राघोबा राणे का जन्म हुआ था। जीवित रहते हुए सेना का सर्वोच्च सम्मान उन्हें मिला था। उन्हें परमवीर चक्र से सम्मानित किया गया। आपको बता दें कि जुलाई 1940 को बांबे इंजीनियर में आने के बाद उन्हें नायक के रूप में पदोन्नति मिली और वे 26 इंफेंट्री डिवीजन की 28 फील्ड कंपनी में आए। अपनी सूझबूझ, बहादुरी, नेतृत्व क्षमता से उन्होंने सभी को प्रभावित किया और उन्हें सेकंड लेफ्टिनेंट बनाकर जम्मू-कश्मीर में तैनात किया गया।
कश्मीर में कबाइली हमले के समय नौशेरा की फतह के बाद भारतीय सेना द्वारा दुश्मन के खिलाफ बनाई गई नीति के तहत बारवाली रिज, चिंगास और राजौरी पर कब्जा करने के लिए नौशेरा-राजौरी मार्ग की भौगोलिक रुकावटों और दुश्मनों की सुरंगों को साफ करना जरूरी था।
घुमावदार रास्तों, सुरंगों और कई रुकावटों वाले इस मोर्चे पर रामा राघोबा व उनकी सेना द्वारा 8 अप्रैल 1948 को बहादुरी और सूझबूझ के साथ काम किया गया और 10 अप्रैल तक वे लगातार संघर्ष में डटे रहे। 11 अप्रैल 1948 तक उन्होंने चिंगास का रास्ता साफ कर दिया।
इस दिन भी रात 11 बजे तक आगे के रास्ते की सभी बाधाएं हटा दीं। भारत की जीत के लिए सेकंड लेफ्टिनेंट रामा राघोबा का यह योगदान बेहद महत्वपूर्ण था। सौभाग्य की बात तो यह है कि यह सम्मान उन्होंने स्वयं प्राप्त किया।