इसमें कोई दो राय नहीं है कि स्वामी विवेकानंद हमारे देश के रिलीजियस रॉकस्टार हैं। भारत में इनके अनुयायियों की गिनती करना मूर्खतापूर्ण बात होगी। यह बात उन दिनों की है, जब विवेकानंद अमेरिका के शिकागो में विश्व धर्म सम्मेलन के बाद उनकी ख्याति पूरे विश्व में फैल चुकी थी। उन दिनों एक विदेशी महिला ने स्वामी जी से कहा कि मैं आपसे शादी करना चाहती हूं। स्वामी जी बोले- मैं तो संन्यासी हूं, इसलिए शादी नहीं कर सकता हूं। लेकिन आप मुझसे क्यों शादी करना चाहती हैं? महिला ने कहा- मुझे आप जैसा बेटा चाहिए। स्वामी जी मुस्कुराते हुए बोले- बस इतनी सी बात है, आज से मैं आपका बेटा हो गया। महिला ने श्रद्धा से माथा झुका लिया।

दूसरी घटना है, जब एक महाशय ने स्वामी विवेकानंद से पूछा कि वेदांत की बात तो ठीक है, पर आप मुझे यह बताएं कि इस संसार मेें बार-बार मां को महापूज्य क्यों बताया जाता है। तब स्वामी जी ने कहा कि एक सेर भर का पत्थर ले आओ और इसे कपड़े में लपेटकर अपने पेट से बांध लो। ध्यान रहे, इसे उतारना मत और कल आना।

अगले दिन की प्रतिक्षा कौन करे, शाम होते ही वह महाशय भागे-भागे आए और बोले- महाराज आपने जवाब तो दिया नहीं, ये पत्थर और लाद दिया। स्वामी जी ने उस आदमी से कहा- मां, हमें ऐसे ही नहीं 9 महीने अपने पेट में पालती है। अब समझ में आया, मां सबसे बढ़कर क्यों है।

स्वामी जी भारत भ्रमण के दौरान एक बार बनारस आए। देवी दर्शन करने के बाद परसाद लेकर लौटे तो रास्ते में बनारस के ढीठ बंदरों के झुंड ने उन्हें दौड़ा लिया। स्वामी जी आगे-आगे और पीछे-पीछे बंदरों की फौज। एक बूढ़े साधु ने स्वामी जी को रोकते हुए कहा- जितना भागोगे, ये बंदर तुम्हें उतना ही दौड़ाएंगे। उस बूढ़े साधु ने स्वामी जी को लाठी थमाते हुए कहा- इनका सामना करो। फिर क्या था, स्वामी जी ने उन बंदरों को दौड़ा लिया। स्वामी ने एक स्पीच में इस घटना का जिक्र करते हुए कहा था कि भय से डरकर भागो नहीं, बल्कि उसके पीछे पड़ जाओ, आंख मिलाओ, सब धुंध छट जाएगी।

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