परमवीर चक्र पाने वाले इंडियन आर्मी के जीवित रणबांकुरे
इंटरनेट डेस्क। इंडियन आर्मी के सर्वोच्च मैडल परमवीर चक्र का नाम सुनते ही दिमाग में शूरवीरता और बलिदान की एक सर्वश्रेष्ठ छवि बन जाती है। युद्ध के दौरान उच्चकोटि के सैन्य प्रदर्शन करने पर इंडियन आर्मी अपने जांबाज सैनिकों को परमवीर चक्र से अलंकृत करती है।
हांलाकि भारतीय सेना में अबतक 21 सैनिकों को परमवीर चक्र मिल चुका है। लेकिन इनमें से अधिकांश रणबांकुरों को मरणोपरांत ही यह सम्मान हासिल हो सका। लेकिन इंडियन आर्मी के इन 4 रणबांकुरों को जीवित रहते ही परमवीर चक्र प्राप्त करने का सौभाग्य प्राप्त हुआ है। हम भारतीय सेना के इन शेरों को तहेदिल से नमन करते हैं।
मेजर धनसिंह थापा
मेजर धनसिंह थापा साल 1949 में बतौर अधिकारी सेना में भर्ती हुए। साल 1962 में चीन के साथ हुए युद्ध में 8 गोरखा राइफल्स की पहली बटालियन डी कंपनी की कमान मेजर धनसिंह थापा के हाथों में थी। युद्ध के दौरान थापा की बटालियन में केवल 3 लोग जीवित बच पाए थे, जिन्हें चीनी सेना ने बंदी बना लिया था। काफी यातना सहने के बाद भी थापा जीवित स्वदेश लौटे। इनकी बहादुरी और देशभक्ति के लिए सेना ने मेजर थापा को लेफ्टिनेंट कर्नल बना दिया। मेजर धनसिंह थापा पूरे सम्मान के साथ सेना से सेवानिवृत्त हुए।
मेजर होशियार सिंह
साल 1971 में भारत-पाकिस्तान युद्ध के समय मेजर होशियार सिंह ने अद्भुत शौर्य का प्रदर्शन किया था। 1971 में भारत—पाक युद्ध की समाप्ति से 2 घंटे पहले तक मेजर होशियार सिंह गंभीर रूप से घायल अवस्था में दुश्मनों को मारते जा रहे थे। मेजर होशियार सिंह की बटालियन ने अपने दुश्मनों का खात्मा कर दिया था। सेना ने मेजर होशियार सिंह को परमवीर चक्र से नवाजा।
राइफलमैन संजय कुमार
साल 1999 में पाकिस्तान के साथ हुए कारगिल युद्ध के दौरान संजय कुमार जब युद्ध रणनीति के अनुसार आगे बढ़े तक दुश्मनों ने ऑटोमेटिक गन से फायरिंग शुरू कर दी। आमने सामने हुई इस मुठभेड़ में 3 दुश्मन मारे गए तथा बाकी भाग खड़े हुए। भागने के दौरान दुश्मन अपनी निवर्सल मशीनगन भी छोड़ गए। खून से लथपथ संजय कुमार ने जीत हासिल करके ही दम लिया।
ग्रेनेडियर योगेन्द्र सिंह यादव
18 ग्रेनेडियर बटालियन में शामिल योगेन्द्र सिंह यादव ने 1999 के कारगिल युद्ध में टाइगर हिल पर तिरंगा लहराया था। योगेंद्र सिंह को मात्र 19 साल की उम्र में ही परमवीर चक्र से नवाजा गया। दुश्मनों की पहली चौकी पर कब्जा करने के बाद आगे बढ़ने के दौरान 7 भारतीय सैनिकों की टुकड़ी में 6 शहीद हो चुके थे। अकेले बचे योगेंद्र सिंह के बाए हाथ की हड्डी टूट चुकी थी। इसे उन्होंने बेल्ट से बांधकर एके-47 राइफल से 15—20 दुश्मनों का खात्मा कर दिया। 17,500 फुट की ऊंचाई पर मौजूद तीसरी चौकी पर कब्जा करते हुए योगेंद्र सिंह टाइगर हिल पर तिरंगा लहराने में कामयाब हो गए।