देश की जनता 25 जून 1975 को एक बार जरूर याद करती है। देश में जो काले कारनामें किए गए उसकी तारीखें सुनकर भी शर्म आती है। उस सरकार में सुनी जाती थी तो सिर्फ चापलूसों की, जोर जुल्म के खिलाफ लड़ाई लड़ने वाले जेल के अंदर थे।

बतौर उदाहरण आपातकाल लागू होने के कुछ ही दिन बाद कांग्रेस राज में सबसे ताकतवर बनकर उभरे संजय गांधी की कवरेज दूरदर्शन और आकाशवाणी ठीक ढंग से नहीं कर रहा था, लिहाजा संबंधित युवा मंत्री इंद्र कुमार गुजराल को मैडम के आवास पर तलब किया गया। आवास पर मौजूद संजय गांधी ने बुरा भला कहना शुरू किया। शिक्षित खुद्दार आदमी तुनक गया, बोला मिस्टर जरा तमीज से पेश आईए। कांग्रेस सरकार में आपकी मां के कैबिनेट मंत्री हू और उन्हीं के बुलावे पर यहां आया हूं। गुजराल से यह पद छीनकर विद्या चरण शुक्ल को दे दिया गया।

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मैडम की सरकार में फिल्मों की एक हीरोइन बेंगलुरु जेल में रातों को चीखती रोती थी। जी हां, नाम था स्नेहलता। केवल खूबसूरती ही नहीं दिमाग भी था उस औरत में। वह अच्छी तरह से जानती थी कि इंदिरा की यह सरकार देश को बर्बाद करने पर तुली है। इसलिए डॉ. राम मनोहर लोहिया की यह चेली समाजवाद का नारा बुलंद करते हुए इमरजेंसी का जमकर विरोध कर रही थी। इसलिए सरकार के कारिंदों ने उठाकर इस अभिनेत्री को जेल में बंद कर दिया।

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बेंगलुरु जेल में स्नेहलता को इतना टॉर्चर किया गया कि वह बीमार पड़ चुकी थी, उसके फेफड़े सड़ चुके थे। रिहा होने के बाद यह खूबसूरत दिमाग और शरीर दोनों ही लाश होने में ज्यादा वक्त नहीं ले पाए। अटल और आडवाणी भी उसी जेल में बंद थे लेकिन स्नेहलता के रोने की आवाज बेबस होकर सुनते थे। जल्द ही स्नेहलता भी इस दुनिया से चल बसी।

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