इंटरनेट डेस्क। राजस्थान का जहाज मतलब ऊंट अब संकट के दौर से गुजर रहा है। राजस्थान में ऊंट केवल एक पशु नहीं बल्कि यहां की परम्परा और संस्कृति का हिस्सा है। ऊंट को आधार मान कर कई लोकगीत रचे है। लेकिन राजस्थान के जहाज की संख्या में लगातार कमी हो रही है। जल्द ही पशु गणना शुरू होने जा रही है और इस बार ऊंटों की संख्या में फिर से गिरावट होने के आसार लगाए जा रहे हैं।

पशुपालन विभाग को अलग-अलग जिलों से जो रिपोर्ट मिल रही है उसके अनुसार प्रदेश में अब ऊंटों की संख्या घटकर ढाई से तीन लाख के बीच रह सकती है। ऊंटों का घटता कुनबा राज्य सरकार के लिये चिन्ता का विषय है। यही वजह है कि प्रदेश में ना सिर्फ ऊंट को राज्य पशु का दर्जा दिया गया है बल्कि ऊंट के वध और निर्यात पर भी रोक लगाई गई है।

देश विदेश से लोग राजस्थान में ऊंट की सवारी करने आते है। ये राज्य सरकार के लिए चिंता का विषय बनता जा रहा है। इस पीछे की वजह यह भी है कि पशुपालक अब ऊंटनी को गर्भवती ही नहीं होने देते। दरअसल ऊंटनी का करीब 13 महीने का गर्भकाल होता है।

इस दौरान उसे करीब 4 महीने पूरी तरह आराम की जरुरत होती है। चूंकि इस दौरान पशुपालक को आर्थिक नुकसान उठाना पड़ता है। लिहाजा वह उसके गर्भवती होने से परहेज करता है। अब सरकार ऊंटनी के बच्चा पैदा करने पर पशुपालक को 10 हजार की सहायता दे रही है। यही वजह है कि साल 2016-17 में 8663 और साल 2017-18 में 13 हजार 368 ऊंटनियों के बच्चे पैदा हुये हैं।

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