1858 को चितपावन ब्राह्मण परिवार में जन्मीं रमाबाई ने संस्कृत की पढ़ाई की थी। 22 वर्ष की उम्र तक रमाबाई को संस्कृत के 20 हजार से ज्यादा श्लोक याद थे। महज 3 साल में 4,000 किलोमीटर की यात्रा करने वाली रमाबाई को मराठी, कन्नड़, बांग्ला और हिब्रू जैसी 7 भाषाओं पर एकाधिकार था। बचपन में ही माता-पिता की मौत के बाद वह अपने भाई के साथ देशभर में घूम-घूमकर पुराण की कथाएं सुनाकर गुजारा करती थी।

रमा की पढ़ाई-लिखाई और विद्वता ने बंगाल के विद्वानों में खलबली मचा दी। थियोसोफिकल सोसायटी के केशवचंद्र सेन ने उन्हें पंडिता की उपाधि दी थी। रमाबाई ने बंगाल के एक वकील विपिन बिहारी मेधवी से विवाह कर लिया, लेकिन मेधवी जल्द ही इस दुनिया से चल बसे। इसके बाद रमाबाई इंग्लैंड चली गईं और ईसाई बनकर अंतर्जातीय शादी कर ली।

इसके बाद अधिकांश लोगों ने रमा की आलोचना करनी शुरू कर दी। पति की मौत के बाद रमाबाई एक बार फिर से पूना में आकर रहने लगी थीं। पूना में ही उन्होंने आर्य महिला समाज की स्थापना कर लड़कियों को पढ़ाना शुरू कर दिया। उनकी संस्था बाल विवाह पर रोक लगाने का काम करती थी। लंदन प्रवास के दौरान रमा ने द हाई कास्ट हिंदू विमेन नामक एक किताब लिखी। इस किताब में उन्होंने एक हिंदू महिला होने के दुष्परिणामों जाति, सती प्रथा और बाल विवाह जैसे तमाम मुद्दों पर गंभीरता से लिखा था।

यह उन दिनों की बात है जब कई भाषाओं के जानकार, प्रकांड विद्वान, भारतीय संस्कृति के प्रचारक, समाज सुधारक स्वामी विवेकानंद भी अमेरिका के शिकागो में मौजूद थे। रमाबाई भी अमेरिका जाकर अपने एसोसिएशन के लिए फंड जुटा रही थी।

दोस्तों, आपको बता दें कि 1893 में अमेरिका के शिकागो में स्वामी विवेकानंद हिंदू धर्म के पक्ष में ऐतिहासिक भाषण दिया था। इसके ठीक बाद रमाबाई ने एक पत्र लिखा था जो इस प्रकार है-

पश्चिम की सभी बहनों से मैं अनुरोध करती हूं कि आप बाहरी खूबसूरती से संतुष्ट ना हों। पढ़े-लिखे पुरुषों के बौद्धिक विमर्श, महान दर्शन और भव्य प्राचीन प्रतीकों के नीचे केवल काली गहरी कोठरियां है। जिनके नीचे महिलाओं और नीची जातियों का शोषण होता रहता है।

इसके बाद स्वामी विवेकानंद ने भी एक पत्र लिखा-

मिसेस बुल,

मैं उन स्कैंडल्स के बारे में सुनकर आश्चर्यचकित हूं, जिनमें रमाबाई का सर्कल मुझे शामिल कर रहा है। कोई भी आदमी कितनी भी कोशिश कर ले, लेकिन कुछ लोग उसमे खराबी जरूर ढूंढ निकालते हैं। शिकागो में मुझे हर रोज ऐसे किस्से सुनने को मिलते हैं। कुछ औरत ईसाइयों से भी ज्यादा ईसाई हैं।

इन उपरोक्त पत्रों को पढ़कर ऐसा लगता है कि दोनों ही अपनी जगह सही थे। उन दिनों विवेकानंद हिंदू धर्म की व्याख्या जिस प्रकार से कर रहे थे, वह बिल्कुल सटीक था। रमाबाई के द्वारा महिलाओं को लेकर उठाए गए मुद्दे आज भी प्रासंगिक हैं।

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