राहुल गांधी में झलक रहा है गजब का आत्मविश्वास, जानिए कहां से आई उनमें यह नई धार?
यह बात सभी महसूस कर सकते हैं कि राहुल गांधी के अब वो दिन बीत चुके हैं, जब वो कुछ हिचक के साथ और नीचे देखते हुए भ्रम की स्थिति में भाषण दिया करते थे। राहुल गांधी के भाषणों में एक नई धार देखने को मिल रही है। आपको याद होगा साल 2013 में राहुल गांधी ने दिल्ली के प्रेस क्लब में अचानक पहुंच कर उस अध्यादेश को ही फाड़ दिया था जो कि दागी सांसदों, विधायकों और जनप्रतिनिधियों को बचाने वाला था। उस राजनीतिक हताशा से राहुल गांधी बहुत आगे निकल चुके हैं। इस स्टोरी में हम आपको बताने जा रहे हैं कि राहुल गांधी में हुए बदलाव और नए आत्मविश्वास की वजहें क्या हैं।
1- छत्तीसगढ़, राजस्थान और मध्य प्रदेश की जीत
यह बात अलग है कि राजस्थान और मध्य प्रदेश में सत्ता विरोधी लहर के चलते कांग्रेस को जीत मिली, बावजूद इसके राहुल गांधी की सियासी मेहनत को दरकिनार नहीं किया जा सकता है। जहां तक छत्तीगढ़ की बात है, इस राज्य में कांग्रेस को आश्चर्यजनक जीत मिली। राहुल गांधी ने लोगों के बीच जाकर उनकी परेशानियों को समझा और वर्तमान विधानसभा में जीत के लिए अपने चुनावी घोषणापत्र में उनके (जनता के) विचारों को शामिल किया।
2- वरिष्ठों के अनुभव को प्राथमिकता
राहुल गांधी ने पार्टी के भीतर वरिष्ठ नेताओं के अंदर से असुरक्षा की भावना को दूर करने की कोशिश की है। कुछ वरिष्ठ नेताओं को डर था कि अब उन्हें रिटायर कर दिया जाएगा। हांलाकि कुछ को रिटायर भी किया गया। राजस्थान में युवा नेताओं के दबाव के बावजूद राहुल ने पार्टी के अनुभवी नेताओं अशोक गहलोत और कमलनाथ के अनुभव को तरजीह दी। राहुल गांधी ने लोकसभा में अविश्वास प्रस्ताव पर भाषण के दौरान अपनी सीट से उठकर पीएम मोदी को गले लगाया।
3- रफ़ाल ख़रीद पर राहुल के सियासी हमले
रफाल खरीद मुद्दे पर राहुल गांधी पीएम मोदी को घेरने में सफल रहे। उनकी पार्टी ने मुद्दा उठाया कि हिंदुस्तान एयरोनॉटिक्स लिमिटेड को दरकिनार कर फ़्रांसीसी कंपनी को साझेदार बनाने के लिए दबाव डाला गया, जिसके पास रक्षा उत्पादन का कोई भी पिछला अनुभव नहीं था।
4- न्यूनतम आय की गारंटी का राग
राहुल गांधी ने किसानों की कर्जमाफी के अलावा गरीबी लोगों के खाते में प्रतिमाह 10 हजार रुपए देने का ऐलान किया है। उन्होंने लोगों के लिए केंद्र से न्यूनतम आय की गारंटी देने का वादा किया है। इस प्रस्ताव को राहुल का मास्टर स्ट्रोक माना जा रहा है। इसने केंद्र को कुछ दूसरा उपाय सोचने पर मजबूर कर दिया। बता दें कि राहुल गांधी ने अर्थशास्त्री अरविन्द सुब्रमण्यम के यूनिवर्सल बेसिक इनकम से प्ररेणा लेकर न्यूनतम आय गारंटी का आइडिया लिया।
5- देश चलाने की पहले से बेहतर समझ
कई राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि यदि राहुल गांधी ने मनमोहन सिंह सरकार में मंत्री पद की पेशकश स्वीकार कर ली होती तो उनकी धार और ज्यादा तेज होती। हांलाकि अब वो प्रशासनिक गतिविधियों से पहले से बहुत अधिक परिचित हो चुके हैं। लेकिन इन दिनों देश के कई राज्यों में अपनी सरकार से सीधी बातचीत और पार्टी में बैकअप रिसर्च सिस्टम की वजह से देश चलाने की समझ अब उनमें पहले से बेहतर दिखती है। अब वह कभी शर्मिंदा करने वाली भूल नहीं करते हैं।