कांग्रेस अध्यक्ष राहुल के मुकाबले प्रियंका गांधी साबित कर चुकी हैं अपनी सियासी काबिलियत !
लोकसभा चुनाव 2019 से ठीक पहले कांग्रेस पार्टी ने प्रियंका गांधी को सियासी मैदान में उतारा है। बता दें कि कांग्रेस हाईकमान ने प्रियंका गांधी को पार्टी का महासचिव नियुक्त करते हुए उन्हें पूर्वी उत्तर प्रदेश की जिम्मेदारी सौंपी है। वहीं कुछ लोगों का मानना है कि लोकसभा चुनाव 2019 के मद्देनजर जब पीएम मोदी के मुकाबले सपा-बसपा गठबंधन हुआ और इस गठबंधन से कांग्रेस को दूर रखा गया, तब राहुल और प्रियंका गांधी के बीच इस मुद्दे पर एक लंबी बैठक हुई।
प्रियंका इस बात के लिए कत्तई राजी नहीं हुईं कि महज कुछ सीटें लेकर कांग्रेस पार्टी सपा-बसपा गठबंधन में शामिल हो। इसलिए राहुल गांधी को यूपी में मजबूत बनाने के लिए प्रियंका ने सक्रिय राजनीति में उतरने का फैसला स्वयं ही किया और खुद ही पूर्वी उत्तर प्रदेश का मैदान भी चुन लिया। ऐसे में सवाल यह उठता है कि क्या प्रियंका गांधी अपने भाई राहुल गांधी के मुकाबले कुछ ज्यादा सियासी समझ रखती हैं?
जहां तक राजस्थान, मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ में कांग्रेस की जीत का सवाल है, उसमें राहुल गांधी की भूमिका को दरकिनार नहीं किया जा सकता है। लेकिन इसमें भी दो राय नहीं कि इन तीनों राज्यों में बीजेपी को सत्ता विरोधी लहर का खामियाजा भुगतना पड़ा है। पत्रकार नीरजा चौधरी कहती हैं कि राहुल अब अपनी पप्पू वाली छवि से बाहर निकल गए हैं। बतौर पत्रकार हालिया चुनावी दौरों का जिक्र करते हुए नीरजा कहती हैं कि ग्राउंड पर कोई भी राहुल गांधी को पप्पू नहीं कहता, अब लोग उन्हें सीरियस प्लेयर मानने लगे हैं।
लेकिन हालिया विधानसभा चुनाव परिणामों के बाद कांग्रेस पार्टी के अंदरूनी तहखाने की बात करें तो यह बात बहुत कम लोग जानते हैं कि राजस्थान में अशोक गहलोत, मध्य प्रदेश में कमलनाथ और छत्तीसगढ़ में भूपेश बघेल के मुख्यमंत्री बनाए जाने के पीछे किसका दिमाग था?
जी हां, अगर आप नहीं जानते हैं तो जानकारी के लिए बता दें कि कांग्रेस महासचिव बनने से पहले प्रियंका गांधी पार्टी में पर्दे के पीछे पिछले कई महीनों से सक्रिय थीं। अशोक गहलोत को राजस्थान का मुख्यमंत्री बनाने तथा सचिन पायलट को मनाने का काम भी प्रियंका गांधी ने ही किया था। ज्योतिरादित्य सिंधिया के मुकाबले कमलनाथ को प्रभावी बनाने का काम भी प्रियंका की राजनीतिक दूरदर्शिता का नतीजा है।
इस प्रकार कांग्रेस के बैक ऑफ़िस में काम करते हुए प्रियंका गांधी ने राजस्थान और मध्य प्रदेश के गतिरोध को जिस प्रकार से सुलझाया था, वह काबिले तारीफ है। ऐसा भी नहीं हुआ कि कोई नाराज़ या असंतुष्ट हो गया। इसके लिए प्रियंका गांधी ने काफी मेहनत की थी। ऐसे में यह कहना लाजिमी होगा कि प्रियंका गांधी में राजनीतिक अगुवाई करने की क्षमता राहुल के मुकाबले कहीं से भी कमतर नहीं है।
अगर प्रियंका गांधी की सियासी समझ की बात की जाए तो इसका स्पष्ट उदाहरण साल 1999 में ही देखने को मिल चुका है। वास्तव में साल 1999 ही प्रियंका गांधी का राजनीतिक डेब्यू था। आपको याद दिला दें कि साल 1999 में कांग्रेस के उम्मीदवार कैप्टन सतीश शर्मा रायबरेली से चुनाव मैदान में थे और उनके मुकाबले बीजेपी की तरफ से राजीव गांधी के चचेरे भाई अरुण नेहरू सियासी ताल ठोंक रहे थे। लेकिन एक 27 साल की लड़की ने कांग्रेस का प्रचार करके सियासी फिजा ही बदल दी। राजीव गांधी के चचेरे भाई अरुण नेहरू के चलते रायबरेली में बीजेपी के लिए माहौल बनता हुआ दिख रहा था।
इसी बीच जब एक छोटे से राजनीतिक मंच से उस 27 वर्षीय लड़की ने जनता से पूछा कि मेरे पिता जी से दग़ाबाज़ी करने वालों को आपने यहां पर घुसने कैसे दिया? उन्होंने कहा क्या आप उन्हें वोट देंगे जिन्होंने मेरे पिता की पीठ में छुरा घोंपा। जी हां, आप समझ गए होंगे वह लड़की प्रियंका गांधी थीं। उनके इस छोटे से बयान ने अरुण नेहरू को रायबरेली में बुरी तरह से हारने पर मजबूर कर दिया। शुरूआत में कांटे की टक्कर देने वाले अरुण नेहरू चौथे नंबर पर चले गए और कांग्रेस के कैप्टन सतीश शर्मा वह चुनाव जीत गए।
दूसरी तरफ 27 अक्टूबर 2015 को न्यूज एजेंसी एएनआई को दिए गए बयान में कांग्रेस के दिग्गज नेता माखनलाल फोतेदार ने प्रियंका गांधी को लेकर एक बात कही थी, जो इस प्रकार है- पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने उन दिनों मुझसे कहा था कि मेरे यहां एक लड़की है उसका नाम प्रियंका है। उसका भविष्य बहुत अच्छा है। जब वह बड़ी हो जाएगी, राजानीति में आएगी, तब लोग मुझे भूल जाएंगे। उसको याद करेंगे।
जहां तक राजनीतिक मंच से भाषाशैली का प्रश्न है, इस मामले में भी प्रियंका गांधी कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी के मुकाबले बहुत आगे दिखती हैं। उनकी भाषण शैली बहुत अच्छी है। जाहिर सी बात है, कहीं ना कहीं राहुल गांधी के मुकाबले प्रियंका गांधी का व्यक्तित्व प्रभावी नजर आता है। हांलाकि भविष्य स्वयं ही यह सिद्ध कर देगा कि राहुल के मुकाबले प्रियंका गांधी कितनी प्रभावी साबित होंगी?
इस बारे में बीजेपी के चर्चित प्रवक्ता संबित पात्रा सियासी तंज करना नहीं भूलते हैं। संबित पात्रा के मुताबिक, कांग्रेस महासचिव पद पर नियुक्त किया जाना, वास्तव में प्रियंका गांधी का राज्याभिषेक है। बहन प्रियंका गांधी को राजनीति में ले आना कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी की नाकामी है।