पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा के पति फ़िरोज़ गांधी अपने 48वें जन्मदिन से ठीक 4 पहले इस दुनिया से चल बसे थे। बता दें कि फ़िरोज़ के पार्थिव शरीर को लेकर इंदिरा गांधी वेलिंगटन अस्पताल से सीधे तीन मूर्ति भवन पहुंची थीं। इंदिरा गांधी की जीवनी लिखने वाली कैथरीन फ़्रैंक के मुताबिक, इंदिरा गांधी ने इस बात पर जोर दिया था कि वह फिरोज के शव को नहलाकर अंतिम संस्कार के लिए खुद ही तैयार करेंगी। इस दौरान वहां कोई मौजूद नहीं होगा।

तत्पश्चात तीन मूर्ति भवन के निचली मंजिल से फ़र्नीचर हटवा दिए गए और कालीनों पर सफ़ेद चादरें बिछा दी गईं। इसके बाद फिरोज गांधी को श्रद्धांजलि देने के लिए लोगों की भीड़ जुटनी शुरू हो गई। नयनतारा सहगल के मुताबिक, पंडित अपने कमरे में अकेले बैठे हुए थे और बार-बार यही कह रह थे कि उन्हें इस बात की जरा भी उम्मीद नहीं थी कि फिरोज इतनी जल्दी चले जाएंगे। संजय और राजीव गांधी सफेद चादर पर चुपचाप बैठे हुए थे।

फ़िरोज़ गांधी का शव त्रिमूर्ति भवन में ही लोगों के अंतिम दर्शन के लिए रखा गया था। वहां मौजूद भीड़ देखकर नेहरू ने कहा था कि मुझे पता नहीं था कि फिरोज लोगों के बीच इतने लोकप्रिय हैं। इंदिरा खुद को नियंत्रित करने की कोशिश कर रही थीं, लेकिन उनकी आंखों से आंसू निकल रहे थे। 9 सितंबर को तिरंगे में लिपटे फ़िरोज़ के पार्थिव शरीर को ट्रक के जरिए निगमबोध घाट पर लाया गया। जहां 16 साल के राजीव गांधी ने अपने पिता फ़िरोज़ की चिता को आग लगाई। इस प्रकार फिरोज गांधी का अंतिम संस्कार हिंदू रीति-रिवाजों से किया गया।


फिरोज गांधी के दाह संस्कार के 2 दिन बाद उनके अस्थि कलश को इलाहाबाद ले जाया गया। जहां उसका एक भाग संगम में प्रवाहित किया गया तो दूसरा भाग इलाहाबाद की पारसी क़ब्रगाह में दफ़ना दिया गया। जब फिरोज गांधी की अस्थियां संगम में प्रवाहित की गई, उस दौरान पंडित जवाहरलाल नेहरू भी मौजूद थे। वहीं फ़िरोज़ गांधी के दोस्त आनंद मोहन के अनुसार, उनकी अस्थियों के कुछ हिस्से को सूरत में फिरोज गांधी की पुश्तैनी कब्रगाह में भी दफ़नाया गया।

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