निर्वाचन आयोग ने प्रस्ताव दिया है कि राजनीतिक दलों को एक बार में मिलने वाले नकद चंदे की अधिकतम सीमा 20 हजार रुपये से घटाकर दो हजार रुपये की जाए। लेकिन क्‍या इस प्रस्‍वात से राजनीतिक चंदे का खेल क्‍या रुक पाएगा? राजनीतिक में काले धन का प्रयोग कई वर्षो से चला आ रहा है। चुनावी चंदा इसमें महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। राजनीतिक पार्टियों को अभी 20 हजार रुपये तक के राजनीतिक चंदे का ब्‍योरा नहीं देना होता है। ऐसे में राजनीतिक चंदे का खेल चलता आ रहा है।

भ्रष्‍टाचार क्‍या 2 हजार रुपये के चंदे से कम होगा ?
कई पार्टियों के कार्यकर्ताओं की संख्‍या ही करोड़ों में है। ऐसे में आप कल्‍पना कर सकते हैं कि सिर्फ 2-2 हजार रुपये के चंदे से भी पार्टियों के पास कितना धन आ सकता है, जिसका चुनाव आयोग को कोई रिकॉर्ड नहीं देना होगा। अगर राजनीतिक दलों को एक बार मिलने वाले नगद चंदे की सीमा 2 हजार रुपये भी कर दी जाए, तो क्‍या काले धन पर रोक लग पाएगी? हमारे देश की आबादी 130 करोड़ से ज्‍यादा है। हालांकि, चुनाव आयोग का ये कदम सराहनीय कहा जा सकता है।

क्‍या राजनीतिक दल तय करेंगे चंदे की सीमा
चंदा देने वाले आमतौर पर नियम-कानून की झंझट में नहीं फंसना चाहते हैं। ऐसे में सवाल उठता है कि क्‍या राजनीतिक चंदे की सीमा तय करेंगे? राजनीति दलों को चुनाव लड़ने के लिए पैसे की जरूरत होती है। इस पैसे का मुख्‍य स्रोत चंदा ही होता है।इस साल के अंत में गुजरात और हिमाचल प्रदेश के विधानसभा चुनाव होने हैं। वहीं 2024 में लोकसभा चुनाव होने हैं। ऐसे में इसकी उम्‍मीद कम लगती है कि राजनीतिक चंदे की सीमा तय करने के लिए कोई नियम बनेगा।

ये हैं राजनीतिक चंदा देने के मौजूदा नियम
सूत्रों ने सोमवार को बताया, मुख्य चुनाव आयुक्त राजीव कुमार ने केंद्रीय विधि मंत्री किरण रिजिजू को पत्र लिखकर जन प्रतिनिधित्व कानून में कुछ संशोधन की अनुशंसा की है। उन्होंने कहा कि आयोग की सिफारिशों का उद्देश्य राजनीतिक दलों को मिलने वाले चंदे की व्यवस्था में सुधार एवं पारदर्शिता लाना है। चुनाव लड़ने वाले उम्मीदवारों के खर्च में भी आयोग कमी लाना चाहता है। राजनीतिक दलों को नकद चंदे अज्ञात स्रोतों से दिए जाते हैं। मौजूदा नियमों के अनुसार, पार्टियों को 20 हजार रुपये से ऊपर वाले सभी चंदों का विवरण चुनाव आयोग को देना पड़ता है।

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