हम सभी को अक्सर स्वामी विवेकानंद और उनके गुरू रामकृष्ण परमहंस से जुड़े कई प्रेरक प्रसंग पढ़ने को मिलते हैं। इसी क्रम में आज हम आपको विवेकानंद से जुड़ा एक प्रचलित किस्सा बताने जा रहे हैं। प्रसंग के मुताबिक, एक बार रामकृष्ण परमहंस अपने शिष्यों को सही अवसरों का महत्व बता रहे थे। उन्होंने कहा कि हर व्यक्ति के जीवन में सही अवसर आते हैं, लेकिन वह ज्ञान और साहस की कमी की वजह से उसका लाभ नहीं उठा पाता है। अज्ञानता के कारण कुछ लोग अवसर को पहचान नहीं पाते वहीं कुछ लोग अवसर को समझ लेते हैं लेकिन उसका लाभ लेने का साहस उनमें नहीं होता है।

सभी शिष्य अपने गुरू बातें ध्यान से सुन रहे थे, लेकिन रामकृष्ण परमहंस को इस बात का अहसास हो चुका था कि किसी भी शिष्य को कुछ समझ नहीं आ रहा। तब उन्होंने सामने बैठे विवेकानंद से पूछा- नरेंद्र! मान ले अगर तू एक मक्खी है और तेरे सामने अमृत का कटोरा भरा पड़ा है। अब तू बता उसमें कूदेगा या किनारे पर बैठकर अमृतपान करेगा।

विवेकानंद ने अपने गुरू से कहा कि मै किनारे पर बैठकर अमृतपान करूंगा, क्योंकि यदि मैं बीच में कूदा तो मेरे प्राण संकट में आ जाएंगे। इसलिए समझदारी इसी में है कि किनारे बैठकर ही अमृतपान कर लिया जाए। वहां उपस्थित सभी शिष्य विवेकानंद के उत्तर से संतुष्ट होकर उनकी तारीफ करने लगे। तभी रामकृष्ण परमहंस हंसने लगे और बोले- मूर्ख, जिस अमृत को पीकर तू अमर हो जाएगा, उसमें डूबने से डरता है। जब अमृत में डूबने का सुअवसर मिल रहा है, तो मृत्यु का डर क्यों? अमृत पीने के बाद तो वैसे ही सभी अमर हो जाते हैं। अब सभी शिष्यों को अपने गुरू की बात समझ में आ गई।

इस प्रसंग से हमें यह सीख मिलती है कि जब तक हम किसी काम के प्रति पूरी तरह से समर्पित नहीं होंगे, पर्याप्त ज्ञान और साहस नहीं होगा, हमें सफलता नहीं मिल पाएगी।

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